Skip to main content
Ek Geet Sau Afsane

Ek Geet Sau Afsane

By Radio Playback India

Every song has its own journey once it is released for the audiences but there are many back stories behind every song about which we generally remained unaware, so this series is for bringing to you all such back stories related to many favorite songs of our times, that are very much part of our life, stay tuned with Sujoy Chatterjee and Sangya Tandon for a weekly dose of Ek Geet Sau Afsane
Available on
Apple Podcasts Logo
Pocket Casts Logo
RadioPublic Logo
Spotify Logo
Currently playing episode

तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया

Ek Geet Sau AfsaneJun 04, 2024

00:00
15:27
 तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया

तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : मातृका

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुनी हैं वर्ष 2024 की फ़िल्म ’तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’ का शीर्षक गीत। राघव, असीस कौर और तनिष्क बागची की आवाज़ें; नीना माथुर और तनिष्क बागची के बोल, तथा राघव व तनिष्क बागची का संगीत। फ़िल्म की अजीब-ओ-ग़रीब कहानी के लिए गायक-संगीतकार राघव के दो दशक पुराने इस गीत के बोल कैसे सार्थक हुए? क्या सम्बन्ध है राघव का इस गीत के गीतकार नीना माथुर के साथ? राघव द्वारा रचे मूल गीत के बनने की क्या कहानी है? उस गीत के साथ इस फ़िल्मी संस्करण के बीच कैसी समानताएँ व अन्तर हैं? ये सब आज के इस अंक में।

Jun 04, 202415:27
मिलाते हो उसी को ख़ाक में

मिलाते हो उसी को ख़ाक में

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : रचिता देशपांडे

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुनी हैं वर्ष 1928 में रेकॉर्ड और जारी की हुई ग़ैर-फ़िल्मी ग़ज़ल - "मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है"। पियारा साहेब की आवाज़। कलाम है दाग़ देहलवी का। मौसिक़ी पियारा साहेब की ही। इस ग़ज़ल के बहाने जानें भूले बिसरे गायक पियारा साहेब की ज़िन्दगी और उनकी गुलुकारी के बारे में। साथ ही दाग़ देहलवी की शाइरी की ख़ासियत पर एक नज़र। इस ग़ज़ल के तमाम शेरों को इस अंक में सुनते हुए महसूस कीजिए दाग़ की लेखनी की आधुनिक शैली को। जिस रेकॉर्डिंग सत्र में यह ग़ज़ल रेकॉर्ड हुई थी, उसी सत्र में पियारा साहेब ने एक अन्य ग़ज़ल भी रेकॉर्ड की थी जिसके आधार पर 1988 की फ़िल्म ’शूरवीर’ के लिए गीतकार एस. एच. बिहारी ने एक गीत लिखा था। कौन सी थी वह ग़ज़ल? ये सब आज के इस अंक में।

May 29, 202413:29
मैं हूँ तेरे लिए, तू है मेरे लिए

मैं हूँ तेरे लिए, तू है मेरे लिए

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : शिवम मिश्रा

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1983 की फ़िल्म ’एक बार चले आओ’ का गीत "मैं हूँ तेरे लिए, तू है मेरे लिए"। आशा भोसले और नितिन मुकेश की आवाज़ें, अनजान के बोल, और चाँद परदेसी का संगीत। फ़िल्म के गीतकारों के इर्द-गिर्द किस तरह के संशय विद्यमान हैं? कितना जानते हैं हम कमचर्चित संगीतकार चाँद परदेसी के बारे में? लोकप्रिय होने के सारे गुणों के होते हुए इस गीत में क्या कमी रह गई? आख़िर क्या थी इस फ़िल्म की कहानी? ये सब आज के इस अंक में।

May 21, 202414:46
छोड़ आकाश को सितारे, ज़मीं पर आये

छोड़ आकाश को सितारे, ज़मीं पर आये

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : श्री शर्मा

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1932 की फ़िल्म ’माया मच्छिन्द्र’ का गीत "छोड़ आकाश को सितारे, ज़मीं पर आये"। गोविन्दराव टेम्बे की आवाज़, कुमार के बोल, और गोविन्दराव टेम्बे का संगीत। सवाक फ़िल्मों के दौर के शुरू-शुरू में बनने वाली इस फ़िल्म के तमाम पहलुओं के बारे में जानें। गोविन्दराव टेम्बे के कलात्मक सफ़र की दास्तान भी है आज के इस अंक में। साथ ही प्रस्तुत गीत से सम्बधित कुछ बातें। ये सब आज के इस अंक में।

May 14, 202412:35
आयी बरखा बहार, पड़े बून्दन फुहार

आयी बरखा बहार, पड़े बून्दन फुहार

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : अनुज श्रीवास्तव

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1951 की फ़िल्म ’शोख़ियाँ’ का गीत "आयी बरखा बहार, पड़े बून्दन फुहार"। लता मंगेशकर, प्रमोदिनी देसाई और साथियों की आवाज़ें, किदार शर्मा के बोल, और जमाल सेन का संगीत। बड़ी बजट की फ़िल्म होते हुए भी किदार शर्मा ने संगीत का भार अनुभवहीन नये संगीतकार जमाल सेन को क्यों सौंपा? फ़िल्म के गीत-संगीत से जुड़ी क्या-क्या उल्लेखनीय बातें रहीं? प्रस्तुत गीत का फ़िल्म में कैसा अवस्थान है? यह गीत किस दृष्टि से ट्रेण्डसेटर रहा? कितना जानते हैं आप गायिका प्रमोदिनी देसाई को? ये सब आज के इस अंक में।

May 07, 202415:37
इस काल काल में हम तुम करें धमाल

इस काल काल में हम तुम करें धमाल

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 2005 की फ़िल्म ’काल’ का गीत "इस काल काल में हम तुम करें धमाल"। कुणाल गांजावाला, कैरालिसा मोन्टेरो, रवि खोटे और सलीम मर्चैण्ट की आवाज़ें, शब्बीर अहमद के बोल, और सलीम-सुलेमान का संगीत। इस फ़िल्म के गीतों के फ़िल्मांकन और फ़िल्म में उनके अवस्थान की क्या ख़ासियत है? इस फ़िल्म के गीत-संगीत के लिए कैसे चुनाव हुआ सलीम-सुलेमान और शब्बीर अहमद का? इस आइटम नम्बर के लिए सारी सम्भावनायें सुखविन्दर सिंह की होने के बावजूद कुणाल गांजावाला को शाहरुख़ ख़ान के प्लेबैक के लिए क्यों चुना गया? गीत में अतिरिक्त आवाज़ों की क्या भूमिका है? इस गीत के लिए शाहरुख़ ख़ान को कैसी तैयारियाँ करनी पड़ी? ये सब आज के इस अंक में।

Apr 30, 202414:12
क्या हमने बिगाड़ा है, क्यों हमको सताते हो

क्या हमने बिगाड़ा है, क्यों हमको सताते हो

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : श्वेता पांडेय

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1944 की फ़िल्म ’भँवरा’ का गीत "क्या हमने बिगाड़ा है, क्यों हमको सताते हो"। कुन्दनलाल सहगल और अमीरबाई कर्नाटकी की आवाज़ें, किदार शर्मा के बोल, और खेमचन्द प्रकाश का संगीत। इस गीत के बहाने जाने इस फ़िल्म के कॉमिक रोमान्टिसिज़्म के बारे में। फ़िल्म के गीतों के गायक कलाकारों के नामों में किस प्रकार का संशय विद्यमान है? इस गीत में एक तीसरी आवाज़ किस गायिका की समझी जाती है? कैसी बड़ी ग़लती के. एल. सहगल ने इस गीत में कर डाली है? तीन हल्के-फुल्के शेरों के माध्यम से किदार शर्मा ने छेड़-छाड़ के प्रसंग को किस प्रकार व्यक्त किया है? ये सब आज के इस अंक में।

Apr 23, 202414:45
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो

कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : सुमेधा अग्रश्री

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1994 की फ़िल्म ’1942: A Love Story’ का गीत "कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो"। गीत के दो संस्करण हैं, ए क कुमार सानू की आवाज़ में, और एक लता मंगेशकर की आवाज़ में। जावेद अख़्तर के बोल, और राहुल देव बर्मन का संगीत। पंचम द्वारा बनाये गये इस गीत की धुन को सुन कर विधु विनोद चोपड़ा क्यों बौखला गए थे? इस गीत की रेकॉर्डिंग के बाद आर. डी. बर्मन ने कुमार सानू पर गालियों की बारिश क्यों की? गीत के female version को लेकर किस तरह के संशय और विवाद उत्पन्न हुए? कविता कृष्णमूर्ति के साथ यह गीत किस तरह से जुड़ा हुआ है? ये सब आज के इस अंक में?

Apr 16, 202415:17
चले आना सनम, उठाये क़दम

चले आना सनम, उठाये क़दम

परिकल्पना : सजीव सारथी ।।

आलेख : सुजॉय चटर्जी ।।

स्वर : रचिता देशपांडे ।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।।

नमस्कार दोस्तों,

’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला।

दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1963 की फ़िल्म ’देखा प्यार तुम्हारा’ का गीत " चले आना सनम, उठाये क़दम"। आशा भोसले की आवाज़, मजरूह सुल्तानपुरी के बोल,और राज रतन का संगीत। क्या है इस फ़िल्म का पार्श्व, इसकी विषयवस्तु, इससे जुड़े लोग और कलाकार? फ़िल्म की कहानी में किस तरह यह गीत फ़िट होता है? इस गीत के बहाने जाने इस गीत व इस फ़िल्म से जुड़ी वो बातें जिन पर शायद अब वक़्त की धूल चढ़ चुकी है।

 

Apr 12, 202414:18
ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो

ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुनी है साल 1915 में रेकॉर्ड की हुई ग़ज़ल "ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो, मुबारक हो"। जानकी बाई की आवाज़। उन्हीं का यह कलाम है और उन्हीं की मौसिक़ी। इस मुबारकबादी मुजरे के बहाने जाने ग्रामोफ़ोन रेकॉर्डिंग के शुरुआती मशहूर कलाकारों में एक, जानकी बाई के जीवन की कहानी। इस ग़ज़ल की रेकॉर्डिंग से चार वर्ष पहले ब्रिटिश शासन के किस महत्वपूर्ण समारोह के परिप्रेक्ष्य में इसकी रचना करवाई गई थी? उस सजीव प्रस्तुति में जानकी बाई के साथ किस मशहूर गायिका ने इस ग़ज़ल में आवाज़ मिलायी थी? क्यों जानकी बाई को "छप्पन-छुरी" वाली कहा जाता है? इस रेकॉर्ड के तीस साल बाद, किस फ़िल्मी गीत में इस ग़ज़ल के मतले की पहली लाइन का प्रयोग गीतकार अहसान रिज़्वी ने किया? ये सब आज के इस अंक में।

Apr 02, 202414:05
शकील बदायूंनी के लिखे तीन होली गीत

शकील बदायूंनी के लिखे तीन होली गीत

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज का अंक ख़ास है। ख़ास इसलिए कि यह सप्ताह होली त्योहार का सप्ताह है। और जब बात होली की चलती है, तब बात आती है हुड़दंग की, एक दूसरे पर रंग डालने की, जी भर के झूमने-गाने और ख़ुशियाँ मनाने की। और इन पहलुओं और भावनाओं को साकार करने में हमारी फ़िल्मी गीतों का ख़ास योगदान रहा है। बोलती फ़िल्मों के शुरुआती दौर से ही फ़िल्मी होली गीतों की अपनी अलग जगह रही है, अपना अलग पहचान रहा है। और होली गीतों के इस इतिहास को ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक कड़ी में समेटना असम्भव है। इसलिए आज के इस विशेषांक के लिए हम फ़िल्मी होली गीतों के समुन्दर में से चुन लाये हैं केवल एक ही गीतकार, शकील बदायूंनी के लिखे तीन बेहतरीन होली गीतों से सम्बन्धित कुछ बातें।

Mar 26, 202413:14
भारत की एक सन्नारी की हम कथा सुनाते हैं...

भारत की एक सन्नारी की हम कथा सुनाते हैं...

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : शहनीला नजीब

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों,आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1943 की फ़िल्म ’राम राज्य’ का गीत "भारत की एक सन्नारी की हम कथा सुनाते हैं"। राम आप्टे और मधुसुदन जानी की आवाज़ें, रमेश गुप्त के बोल, और शंकरराव व्यास का संगीत। ’प्रकाश पिक्चर्स’ के स्थापक विजय भट्ट और शंकरभाई भट्ट का किस तरह से संगीतकार शंकरराव व्यास से सम्पर्क हुआ और कैसे ये इस बैनर की धार्मिक व पौराणिक फ़िल्मों के संगीतकार बने? इस गीत के पार्श्वगायकों को लेकर किस तरह का भ्रम वर्षों तक विद्यमान रहा और इसका कारण क्या था? अस्सी के दशक में यह भ्रम कैसे दूर हुआ? फ़िल्म में इस गीत का अवस्थान और इसका पूरा वृत्तान्त, आज के इस अंक में। साथ ही जानिये कि इसी गीत से मिलता-जुलता रामानन्द सागर द्वारा रचित टीवी धारावाहिक ’रामायण’ में वह प्रसिद्ध गीत कौन सा था?

Mar 19, 202414:44
चिट्ठी आयी है वतन से...

चिट्ठी आयी है वतन से...

परिकल्पना : सजीव सारथी ।।

आलेख : सुजॉय चटर्जी ।।

वाचन : रचिता देशपांडे ।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।।


नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला।

दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1986 की फ़िल्म ’नाम’ का गीत "चिट्ठी आयी है वतन से चिट्ठी आयी है"। पंकज उधास और साथियों की आवाज़ें, आनन्द बक्शी के बोल, और लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल का संगीत। निर्माता राजेन्द्र कुमार को पंकज उधास से इस फ़िल्म में यह आइटम गीत गवाने का ख़याल कैसे आया? पंकज उधास ने इस गीत को गाने का न्योता स्वीकारते हुए राजेन्द्र कुमार से माफ़ी क्यों मांगी? इस गीत की रेकॉर्डिंग करते समय संगीतकार लक्ष्मीकान्त ने फ़िल्मी गीत के रेकॉर्डिंग तकनीक की कौन सी प्रचलित परम्परा को तोड़ी? सिबाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बावजूद इस गीत को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार क्यों नहीं मिल पाया? BBC Radio की ओर से इस गीत को कैसा सम्मान मिला? ये सब, आज के इस अंक में।

Mar 13, 202414:19
राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं...

राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं...

राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं...फिल्म : नमकीन

परिकल्पना : सजीव सारथी ।।

आलेख : सुजॉय चटर्जी।।

वाचन : शुभ्रा ठाकुर ।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।।


नमस्कार दोस्तों,

’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1982 की फ़िल्म ’नमकीन’ का गीत "राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं"। किशोर कुमार की आवाज़, गुलज़ार के बोल, और राहुल देव बर्मन का संगीत।

क्या थी ’नमकीन’ की कहानी और कैसे यह गीत रचा-बसा है इस कहानी में? नवाब वाजिद अली शाह के किस शेर का आधार गुलज़ार ने इस गीत के मुखड़े को बनाया? भारत के स्वाधीनता संग्राम के सन्दर्भ में इस शेर का क्या महत्व रहा है? और किन किन फ़िल्मी गीतकारों ने भी इस शेर का सहारा लिया? पंचम ने अपने किस पुराने गीत की एक धुन का प्रयोग इस गीत के अन्तराल संगीत में किया? इस गीत के साथ इस फ़िल्म के दो अलग अन्त की क्या विडम्बना रही है? ये सब, आज के इस अंक में।

 

Mar 05, 202415:29
ये ज़िन्दगी उसी की है...

ये ज़िन्दगी उसी की है...

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : शुभ्रा ठाकुर

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1953 की फ़िल्म ’अनारकली’ का गीत "ये ज़िन्दगी उसी की है, जो किसी का हो गया"। लता मंगेशकर की आवाज़, राजेन्द्र कृष्ण के बोल, और सी. रामचन्द्र का संगीत। शुरू-शुरू में संगीतकार बसन्त प्रकाश इस फ़िल्म के संगीतकार होने के बावजूद बीच में ही संगीतकार क्यों बदलना पड़ा? इस गीत के साथ ’मुग़ल-ए-आज़म’ फ़िल्म के "जब प्यार किया तो डरना क्या" गीत की तुलना में कौन सी ग़लत धारणा आम लोगों में बनी हुई है? प्रस्तुत गीत के साथ फ़िल्म के क्लाइमैक्स सीन तथा ’मुग़ल-ए-आज़म’ फ़िल्म के क्लाइमैक्स के बीच कैसा अन्तर है? उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान और पंडित जसराज के बीच इस गीत के संदर्भ में कौन सी दिलचस्प घटना मशहूर है? ये सब, आज के इस अंक में।

Feb 29, 202416:33
क्या मौसम आया है...

क्या मौसम आया है...

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : जया शुक्ला

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1993 की फ़िल्म ’अनाड़ी’ का गीत "क्या मौसम आया है"। साधना सरगम और उदित नारायण की आवाज़ें, समीर के बोल, और आनन्द-मिलिन्द का संगीत। क्या है इस फ़िल्म के निर्माण का पार्श्व? नायक-नायिका पर फ़िल्माये गए इस ख़ुशनुमा युगल गीत में प्रेम प्रसंग क्यों नहीं है? गीतकार समीर ने स्थान-काल-पात्र को ध्यान में रखते हुए इस गीत को किस तरह पूर्णता प्रदान की? इस फ़िल्म में नायिका के लिए उस दौर की चर्चित पार्श्वगायिकाओं में से साधना सरगम का ही चुनाव क्यों हुआ? ये सब, आज के इस अंक में।

Feb 20, 202415:23
कहाँ उड़ चले हैं मन प्राण मेरे...

कहाँ उड़ चले हैं मन प्राण मेरे...

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1961 की फ़िल्म ’भाभी की चूड़ियाँ’ का गीत "कहाँ उड़ चले हैं मन प्राण मेरे"। आशा भोसले और मुकेश की आवाज़ें, पंडित नरेन्द्र शर्मा के बोल, और सुधीर फड़के का संगीत। फ़िल्म की कहानी के प्रवाह में क्या है इस गीत की भूमिका? इस गीत के सन्दर्भ में यह फ़िल्म अपनी मूल मराठी फ़िल्म से किस प्रकार भिन्न है? पंडित नरेन्द्र शर्मा और सुधीर फड़के के कौन से आयाम इस गीत में झलक पाते हैं? ये सब, आज के इस अंक में।

Feb 13, 202416:18
कौन डगर कौन शहर, तू चली कहाँ...

कौन डगर कौन शहर, तू चली कहाँ...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : रीतेश खरे

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2001 की फ़िल्म ’लज्जा’ का गीत "कौन डगर कौन शहर, तू चली कहाँ"। लता मंगेशकर की आवाज़, प्रसून जोशी के बोल, और इलैयाराजा का संगीत। फ़िल्म में समीर और अनु मलिक गीतकार-संगीतकार होते हुए भी इस गीत के लिए अलग गीतकार-संगीतकार की आवश्यकता क्यों आन पड़ी? क्यों चुनाव हुआ प्रसून जोशी और इलैयाराजा का? इस गीत की रेकॉर्डिंग से जुड़ी कैसी यादें हैं प्रसून जोशी की? लता मंगेशकर के आख़िरी दिनों में वे प्रसून जोशी के साथ एक गीत पर काम कर रही थीं। वह कौन सा गीत था और उसके साथ फ़िल्म ’लज्जा’ के इस गीत की क्या समानता है? ये सब, आज के इस अंक में।

Feb 06, 202414:55
आशा भोसले के बाद ओ. पी. नय्यर की पार्श्वगायिकाएँ

आशा भोसले के बाद ओ. पी. नय्यर की पार्श्वगायिकाएँ

आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : दिलीप बैनर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज का अंक है ख़ास क्योंकि आज हम आ पहुँचे हैं इस सीरीज़ के 150-वें अंक पर। यानी कि आज है ’एक गीत सौ अफ़साने’ का हीरक-स्वर्ण-जयन्ती अंक। इस अंक को ख़ास बनाने के लिए हमने चुना है संगीतकार ओ. पी. नय्यर साहब को जिनकी 28 जनवरी को ण्यतिथि थी। जी नहीं, हम उनके संगीतबद्ध किसी गीत के बनने की कहानी नहीं सुनाने जा रहे हैं आज। ऐसा तो हम अपने सामान्य अंकों में करते ही हैं। आज के इस ख़ास मौके के लिए हमने चुना है नय्यर साहब के गीतों का एक ख़ास पहलू। दोस्तों, ओ. पी. नय्यर एक ऐसे संगीतकार हुए जो शुरु से लेकर अन्त तक अपने उसूलों पर चले, और किसी के भी लिए उन्होंने अपना सर नीचे नहीं झुकाया, फिर चाहे उनकी हाथ से फ़िल्म चली जाए या गायक-गायिकाएँ मुंह मोड़ ले। करियर के शुरुआती दिनों में ही एक ग़लत फ़हमी की वजह से उन्होंने लता मंगेशकर से किनारा कर लिया था। और अपने करियर के अन्तिम चरण में अपनी चहेती गायिका आशा भोसले से भी उन्होंने सारे संबंध तोड़ दिए। आइए आज हम नज़र डाले उन पार्श्वगायिकाओं द्वारा गाये नय्यर साहब के गीतों पर जो बने आशा भोसले से अलग होने के बाद।ye nahi padhna hai

Jan 30, 202433:21
मैं ग़रीबों का दिल हूँ वतन की ज़बां...

मैं ग़रीबों का दिल हूँ वतन की ज़बां...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : मातृका

प्रस्तुति : संज्ञा टंडननमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1955 की फ़िल्म ’आब-ए-हयात’ का गीत "मैं ग़रीबों का दिल हूँ वतन की ज़बां"। हेमन्त कुमार की आवाज़, हसरत जयपुरी के बोल, और सरदार मलिक का संगीत। किस तरह से फ़िल्मिस्तान ने इस फ़िल्म की योजना बनाई? फ़िल्म के निर्देशक, संगीतकार और गीतकार चुनने के पीछे कौन सी रणनीति अपनायी गई? किस तरह से हसरत जयपुरी ने कहानी के निचोड़ और नायक के चरित्र व व्यक्तित्व को साकार किया गीत के तीनों अन्तरों में? ’आब-ए-हयात’ जुमले का क्या इतिहास है? फ़िल्मिस्तान की अन्य फ़िल्म ’शबिस्तान’ के साथ ’आब-ए-हयात’ की क्या समानता है? ये सब, आज के इस अंक में।

Jan 23, 202415:33
पिया मिलन को जाना...

पिया मिलन को जाना...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : शुभम बारी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1939 की फ़िल्म ’कपालकुण्डला’ का गीत "पिया मिलन को जाना"। आरज़ू लखनवी के बोल, तथा स्वर और संगीत पंकज मल्लिक का। प्रसिद्ध उपन्यास ’कपालकुण्डला’ के किस चरित्र पर यह गीत फ़िल्माया गया है और कहानी के किस मोड़ व संदर्भ में। आरज़ू लखनवी ने शब्दों का कैसा ताना-बाना बुना है इस गीत के भाव को व्यक्त करने के लिए? किस अन्य फ़िल्म में पंकज मल्लिक और इला घोष की आवाज़ों में यह गीत सुनाई देता है? दक्षिण भारत के किन चार फ़िल्मों में इसी गीत की धुन पर गीत बने हैं? ये सब, आज के इस अंक में।

Jan 16, 202414:50
दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल...

दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : दीप्ति अग्रवाल

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1942 की फ़िल्म ’जवाब’ का गीत "दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल"। कानन देवी की आवाज़; पंडित मधुर के बोल, और कमल दासगुप्ता का संगीत। फ़िल्म ’जवाब’ में पी. सी. बरुआ और कानन देवी ne फ़िल्म जगत की किस प्रचलित धारा को त्याग कर एक अलग तरीके से फिर एक बार साथ-साथ काम किया? गीतकार पंडित मधुर और संगीतकार कमल दासगुप्ता, दोनों की ही यह प्रथम हिन्दी फ़िल्म थी। कैसे ये दोनों इस फ़िल्म के साथ जुड़े? क्या है "तूफ़ान मेल" नामक रेलगाड़ी की हक़ीक़त? इस गीत के बोलों से रेलगाड़ी आधारित तमाम फ़िल्मी गीतों के किस पहलू की शुरुआत हुई थी? ये सब, आज के इस अंक में।

Jan 09, 202413:25
देखो 2000 ज़माना आ गया..

देखो 2000 ज़माना आ गया..

आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : दीपिका भाटिया प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2000 की फ़िल्म ’मेला’ का गीत "देखो 2000 ज़माना आ गया"। आमिर ख़ान, हरिहरन, लेज़ली लुइस और साथियों की आवाज़ें; धर्मेश दर्शन के बोल, और लेज़ली लुइस का संगीत। फ़िल्म की पटकथा में इस गीत का अवस्थान ना होते हुए भी इसे किस आधार पर फ़िल्म में शामिल किया गया? फ़िल्म के औपचारिक गीतकार देव कोहली और समीर तथा संगीतकार अनु मलिक और राजेश रोशन के बजाय इस गीत की रचना धर्मेश दर्शन और लेज़ली लुइस ने क्यों की? इस गीत को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए दो महत्वपूर्ण चीज़ें डाली गईं। कौन सी थी वो दो बातें जिन्होंने गीत की काया ही पलट दी? ये सब, आज के इस अंक में।

Jan 02, 202417:37
पल पल हर पल...

पल पल हर पल...

शोध और आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2006 की फ़िल्म ’लगे रहो मुन्ना भाई’ का गीत "पल पल हर पल"। सोनू निगम और श्रेया घोषाल की आवाज़ें; स्वानन्द किरकिरे के बोल, और शान्तनु मोइत्रा का संगीत। मुन्ना भाई सीरीज़ की फ़िल्मों में संजय दत्त की आवाज़ विनोद राठौड़ होने के बावजूद इस गीत को सोनू निगम से क्यों गवाया गया। और ऐसा करने के लिए निर्माता-निर्देशक ने कौन सा राह इख़्तियार किया? शान्तनु मोइत्रा द्वारा रचे सोनू निगम और श्रेया घोषाल के गाये युगल गीतों में किस तरह की समानतायें देखने को मिलती हैं? प्रस्तुत गीत किस विदेशी गीत से प्रेरित है, उसकी क्या कहानी है, और उस मौलिक धुन पर प्रस्तुत गीत के अलावा और कौन सा हिन्दी फ़िल्मी गीत आधारित है? ये सब, आज के इस अंक में।


Dec 26, 202313:57
मोरा पिया बुलावे आधी रात को...

मोरा पिया बुलावे आधी रात को...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : शुभ्रा ठाकुर

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुनी है साल 1922 में ग्रामोफ़ोन कंपनी लिमिटेड के रेकॉर्ड पर जारी मलका जान आगरेवाली की गायी हुई राग मिश्र देश आधारित ठुमरी, जिसके बोल हैं "मोरा पिया बुलावे आधी रात को, नदिया बैरी भई"। क्या हैं इस ठुमरी की विशेषतायें? ठुमरी गायन में मलका जान आगरेवाली कौन सा परिवर्तन लेकर आयीं? ग्रामोफ़ोन कंपनी ने सबसे पहले उनसे और कलकत्ते के पियारा साहिब से एक परम्परा की शुरुआत की थी। कौन सी थी वह परम्परा? भारतीय रेकॉर्डेड संगीत इतिहास के प्रथम पीढ़ी की मशहूर गायिका मलका जान आगरेवाली के जीवन और संगीत सफ़र की जो भी थोड़ी-बहुत विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध है, उसी को हमने आज के इस अंक में समेटने की कोशिश की है।

Dec 19, 202316:30
ज़िक्र होता है जब क़यामत का...

ज़िक्र होता है जब क़यामत का...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : रीतेश खरे

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1970 की फ़िल्म ’माइ लव’ का गीत- "ज़िक्र होता है जब क़यामत का, तेरे जल्वों की बात होती है"। मुकेश की आवाज़, आनन्द बक्शी के बोल, और दान सिंह का संगीत। बड़ी स्टारकास्ट वाली इस फ़िल्म में दान सिंह जैसे नये और कम बजट की फ़िल्मों के संगीतकार को क्यों चुना गया? इस गीत के साथ दान सिंह, खेमचन्द प्रकाश और राग भैरवी का क्या सम्बन्ध है? फ़िल्म के बाहर यह गीत ज़बरदस्त हिट होने के बावजूद फ़िल्म के पर्दे पर कौन सी कमी रह गई? इस फ़िल्म के बाद दूसरे संगीतकारों के कौन से बरताव से दुखी होकर दान सिंह ने बम्बई छोड़ने का फ़ैसला किया? ये सब आज के इस अंक में।

Dec 11, 202314:30
वो लम्हा जिसे जिया ही ना था...

वो लम्हा जिसे जिया ही ना था...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2020 की फ़िल्म ’शकीला’ का गीत - "वो लम्हा जिसे जिया ही न था"। विशाल मिश्र की आवाज़, कुमार के बोल, और वीर समर्थ का संगीत। इस फ़िल्म से हिन्दी फ़िल्म जगत में क़दम रखने वाले संगीतकार वीर समर्थ आख़िर कौन हैं? इस गीत के चार दक्षिणी भाषाओं के संस्करण किन गायकों ने गाये? इस गीत की गायन प्रक्रिया में विशाल मिश्र ने क्या तरीका अपनाया? कोविड काल में जारी हुए इस गीत के बहाने विशाल ने संगीत में होते किस महत्वपूर्ण बदलाव की ओर इशारा किया है? जानिये कि मचलते-थिरकते गीतों के गीतकार कुमार ने किस संजीदगी से इस गीत को अंजाम दिया है। ये सब आज के इस अंक में।

Dec 05, 202312:29
कहे तोसे सजना ये तोहरी सजनिया...

कहे तोसे सजना ये तोहरी सजनिया...

आलेख : सुजॉय चटर्जी।।

वाचन : श्वेता पांडेय।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन।।

नमस्कार दोस्तों,

’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1989 की फ़िल्म ’मैंने प्यार किया’ का गीत - "कहे तोसे सजना, ये तोहरी सजनिया"। शारदा सिन्हा की आवाज़, असद भोपाली के बोल, और राम-लक्ष्मण का संगीत। फ़िल्म की कहानी में इस गीत की क्या भूमिका है और वह कहानी का कौन सा मोड़ है? इस गीत के लिए शारदा सिन्हा की ही आवाज़ क्यों चुनी गई? राजश्री प्रोडक्शन्स के ताराचन्द बरजात्या कैसे और क्यों सम्पर्क में आये शारदा सिन्हा के? इस गीत को पसन्द किए जाने के बावजूद शारदा सिन्हा के गाये गाने हिन्दी फ़िल्मों में ख़ास सुनायी क्यों नहीं दिये? ये सब आज के इस अंक में।

Nov 28, 202313:42
सौतन घर ना जा, अरे मोरे सैयां...

सौतन घर ना जा, अरे मोरे सैयां...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : मातृका

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1911 में ग्रामोफ़ोन कंपनी लिमिटेड के रेकॉर्ड पर जारी ज़ोहरा बाई आगरेवाली का गाया राग ज़िला आधारित दादरा, जिसके बोल हैं "सौतन घर ना जा, अरे मोरे सैयां"। क्या ख़ास बात है इस एक सौ बारह साल पुराने दादरे की? कौन थीं ज़ोहरा बाई आगरे वाली? जिस सत्र में यह दादरा रेकॉर्ड हुआ था, उसमें कौन सी बड़ी ग़लती हुई? इस दादरे का प्रयोग 1963 की किस फ़िल्मी गीत में किया गया है? जानिये ज़ोहरा बाई आगरेवाली और उनकी गायी इस रचना से जुड़ी कई दिलचस्प बातें, आज के इस अंक में।

Nov 21, 202313:30
रातां लम्बियां...

रातां लम्बियां...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2021 की फ़िल्म ’शेरशाह’ का गीत - "तेरी मेरी गल्लां हो गईं मशहूर, के रातां लम्बियां लम्बियां रे"। जुबिन नौटियाल और असीस कौर की आवाज़ें, गीत और संगीत तनिष्क बागची के। इस गीत ने तनिष्क बागची के ऊपर लगे किस इलज़ाम को खारिज करवाने में मदद की? इस गीत की रचना प्रक्रिया के पीछे की क्या कहानी है? गायक जुबिन नौटियाल और गायिका असीस कौर का तनिष्क बागची के साथ कोलाबोरेशन कैसा रहा है? इस फ़िल्म के गीत-संगीत और ख़ास तौर से इस गीत को कौन-कौन से पुरस्कार मिले? इस गीत की विशेषताओं से जुड़ी कुछ और भी बातें, आज के इस अंक में।

Nov 14, 202313:15
तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले...

तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1976 की फ़िल्म ’चितचोर’ का गीत - "तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले"। येसुदास और हेमलता की आवाज़ें, गीत और संगीत रवीन्द्र जैन के। कैसे जुड़े रवीन्द्र जैन, येसुदास और हेमलता फ़िल्म ’चितचोर’ से? येसुदास को राजश्री की दहलीज़ तक पहुंचाने में संगीतकार सलिल चौधरी का क्या योगदान था? रवीन्द्र जैन ने येसुदास की शान में एक बहुत बड़ी बात कह दी थी, वह बात कौन सी थी? रवीन्द्र जैन, संगीतकार बनने से पहले ही हेमलता से सौ-डेढ़ सौ गीत गवा चुके थे, इसका क्या राज़ है? प्रस्तुत गीत की रेकॉर्डिंग लाजवाब होने के बावजूद हेमलता दिन भर क्यों रोयीं? ये सब आज के इस अंक में।

Nov 07, 202316:13
मेरे दिल को चुरा के किधर को चले...

मेरे दिल को चुरा के किधर को चले...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : रिजवाना ख़ान

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1908 में ग्रामोफ़ोन कंपनी लिमिटेड द्वारा रेकॉर्ड किया हुआ गौहर जान की आवाज़ में राग भैरवी आधारित दादरा, जिसके बोल हैं "मेरे दिल को चुरा के किधर को चले"। क्या ख़ास बात है इस एक सौ पन्द्रह साल पुराने दादरे की? इसे सुनते हुए गौहर जान की किस दूरदर्शिता का अहसास होता है? इस दादरे के साथ फ़िल्मी गीत का कौन सा सामन्जस्य अनुभव किया जा सकता है? जानिये गौहर जान और उनकी गायी इस रचना से जुड़ी कई दिलचस्प बातें, आज के इस अंक में।

Oct 31, 202316:11
पल पल है भारी वो विपता है आयी...

पल पल है भारी वो विपता है आयी...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : प्रवीणा त्रिपाठी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचप क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2004 की फ़िल्म ’स्वदेस’ का गीत - "पल पल है भारी वो विपता है आयी"। मधुश्री, विजय प्रकाश, आशुतोष गोवारिकर और साथियों की आवाज़ें, जावेद अख़तर के बोल, और ए. आर. रहमान का संगीत। अशोक वाटिका में सीता माता और लंकापति रावण के बीच संवाद से लेकर रावण वध तक के प्रसंग को किन-किन रागों के माध्यम से साकार किया है ए. आर. रहमान ने? सात मिनटों के इस गीत की अवधि में जावेद अख़तर ने कैसे इसे अपनी लेखन की धार से अत्यन्त प्रभावशाली बना दिया है? इस गीत के विस्तृत विश्लेषण के साथ-साथ जानिये हिन्दी सिनेमा के इतिहास के पन्नों से रामायण पर बनने वाली कुछ महत्वपूर्ण फ़िल्मों के बारे में भी। यह गीत हमें फ़िल्म ’बैजु बावरा’ की याद क्यों दिला जाती है? ये सब आज के इस अंक में।


Oct 24, 202319:03
मेरा मन है मगन, लागी तुमसे लगन...

मेरा मन है मगन, लागी तुमसे लगन...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : सुमेधा अग्रश्री

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला।दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1954 की फ़िल्म ’दुर्गा पूजा’ का गीत- "मेरा मन है मगन, लागी तुमसे लगन"। आशा भोसले और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ें, भरत व्यास के बोल, और एस. एन. त्रिपाठी का संगीत। धीरूभाई देसाई ने इस फ़िल्म के पूरे हो जाने के बावजूद इसे रिलीज़ करने के लिए सितम्बर माह तक का इन्तज़ार क्यों किया? ’दुर्गा पूजा’ शीर्षक से बनने वाली इस फ़िल्म की कहानी में वह कौन सा प्रेम प्रसंग था जिस पर आधारित हुआ यह प्रेम गीत? गीतकार भरत व्यास द्वारा पौराणिक फ़िल्मों के लिए लिखे उच्चस्तरीय गीतों के बावजूद इस गीत के बोल ज़रा हल्के क्यों महसूस होते हैं? गीत के मुखड़े की कैच-लाइन "प्रीत की रीत निभाना जी" का फ़िल्मी गीतों के इतिहास में सबसे पहला प्रयोग किस गीत में हुआ था? ये सब, आज के इस अंक में।

Oct 17, 202315:06
ऐ मेरे हमसफ़र, इक ज़रा इन्तज़ार...

ऐ मेरे हमसफ़र, इक ज़रा इन्तज़ार...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : अनीश श्रीवास

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1988 की फ़िल्म ’क़यामत से क़यामत तक’ का गीत - "ऐ मेरे हमसफ़र, इक ज़रा इन्तज़ार"। उदित नारायण और अलका यागनिक की आवाज़ें, मजरूह सुल्तानपुरी के बोल, और आनन्द-मिलिन्द का संगीत। नासिर हुसैन ने मनसूर ख़ान के सामने मजरूह-आनन्द-मिलिन्द और समीर-आर.डी.बर्मन की जोड़ियों में से किसी एक जोड़ी को चुनने की शर्त क्यों रख दी? मजरूह साहब ने फ़िल्म के किस सिचुएशन के लिए यह गीत लिखा? इस फ़िल्म में अलका यागनिक की कौन सी ख़्वाहिश पूरी हुई? आनन्द-मिलिन्द और उदित नारायण की मुलाक़ात कैसे हुई? यह फ़िल्म रिलीज़ होने पर उदित नारायण को ऐसा क्यों लगा कि उन्हें अब अपने गांव लौट जाने में ही भलाई है? ये सब, आज के इस अंक में।

Oct 10, 202315:04
घूंघट के पट खोल रे...

घूंघट के पट खोल रे...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1950 की फ़िल्म ’जोगन’ का मीरा भजन - "घूंघट के पट खोल रे, तोहे पिया मिलेंगे"। गीता दत्त की आवाज़, और बुलो सी. रानी का संगीत। बुलो सी. रानी को कैसे विश्वास हुआ कि गीता दत्त इस फ़िल्म के भजनों के साथ पूरा-पूरा न्याय कर पायेंगी? दोनों के बीच बारह का क्या आंकड़ा रहा? इस भजन के अर्थ, भावार्थ और फ़िल्म के परिप्रेक्ष में इसके प्रयोग के बीच कैसा ताना-बाना बुना हुआ है? नरगिस पर फ़िल्माये गीता दत्त के तमाम गीतों में एक और कड़ी कौन सी जुड़ी हुई है? इस फ़िल्म के तमाम गीतों में गीता दत्त की व्यक्तिगत पसन्द कौन सी रही? ये सब, आज के इस अंक में।

Oct 03, 202314:12
रुकी-रुकी थी ज़िन्दगी...

रुकी-रुकी थी ज़िन्दगी...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : अर्चना जैन

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों,

’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1999 की फ़िल्म ’मस्त’ का गीत- "रुकी-रुकी थी ज़िन्दगी, झट से चल पड़ी"। सोनू निगम और सुनिधि चौहान की आवाज़ें, नितिन राइकवार के बोल, और संदीप चौटा का संगीत। कैसे बने संदीप चौटा फ़िल्म ’मस्त’ के संगीतकार? कैसे मिला सुनिधि चौहान को इस फ़िल्म में गाने का मौका जहाँ आशा भोसले और साधना सरगम भी गा रही थीं? इस गीत की रेकॉर्डिंग से दो दिन पहले सुनिधि चौहान ने मौन व्रत क्यों धारण कर लिया था? इस गीत की रेकॉर्डिंग के बाद राम गोपाल वर्मा ने गाना अप्रूव करने से पहले क्या किया? इस गीत के बाद सोनू निगम और सुनिधि के बीच कैसा रिश्ता कायम हुआ? ये सब, आज के इस अंक में।

Sep 28, 202313:29
रूप तेरा ते मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना...

रूप तेरा ते मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना...

आलेख : सुजॉय चटर्जी।।

वाचन : रीतेश खरे ।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन।।

नमस्कार दोस्तों,

’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1969 की फ़िल्म ’आराधना’ का गीत - "रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना"। किशोर कुमार की आवाज़, आनन्द बक्शी के बोल, और सचिन देव बर्मन का संगीत। इस फ़िल्म में नायक के प्लेबैक के लिए किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी, दोनों की आवाज़ क्यों ली गई? इसके पीछे जो दो मत सुनने को मिलते हैं, उनमें क्या वैषम्य है? इस गीत की धुन में किशोर कुमार ने फेर बदल क्यों किया? इस गीत के फ़िल्मांकन की कौन सी विशेषता रही? इस गीत के उस साल कौन सा पुरस्कार मिला? ये सब, आज के इस अंक में।

Sep 20, 202314:47
हवा हवा, ऐ हवा, ख़ुशबू लुटा दे...

हवा हवा, ऐ हवा, ख़ुशबू लुटा दे...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : मातृका

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1987 का मशहूर पॉप गीत - "हवा हवा, ऐ हवा, ख़ुशबू लुटा दे"। हसन जहांगीर की आवाज़, मुहम्मद नासिर के बोल, और हसन जहांगीर का संगीत। किस मूल गीत के आधार पर हसन जहांगीर ने रच डाला "हवा हवा" का इतिहास? हिन्दी फ़िल्म जगत में इस गीत की धुन पर कौन कौन से गीत बने? फ़िल्म ’बिल्लू बादशाह’ में गोविन्दा से ही यह गीत क्यों गवाया गया? ’चालीस चौरासी’ फ़िल्म में जब इस गीत को जगह दी गई तब हसन जहांगीर का इस बारे में क्या कहना था? हाल की किस फ़िल्म में फिर एक बार "हवा हवा" की गूंज सुनाई दी है? ये सब, आज के इस अंक में।

Sep 12, 202312:30
ज़रा ज़रा बहकता है...

ज़रा ज़रा बहकता है...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : शहनीला नजीब

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2001 की फ़िल्म ’रहना है तेरे दिल में’ का गीत "ज़रा ज़रा बहकता है, महकता है"। बॉम्बे जयश्री की आवाज़, समीर के बोल, और हैरिस जयराज का संगीत। इस गीत ने गायिका बॉम्बे जयश्री की दिनचर्या और कॉनसर्ट्स पर कैसा सकारात्मक प्रभाव डाला? इस गीत के बोलों और इसके फ़िल्मांकन में कैसा वैषम्य है? फ़िल्म ’साहेब बीबी और ग़ुलाम’ के एक गीत के सन्दर्भ में कही प्रसून जोशी की कौन सी बात इस गीत पर भी लागू होती है? जिस राग पर यह गीत आधारित है, उसी राग पर हैरिस जयराज के किस अन्य गीत का भी हिन्दी संस्करण बना है? इस हिट गीत के बावजूद बॉम्बे जयश्री के बहुत कम फ़िल्मी गीत होने का क्या कारण है? "हैरिस जयराज" और "बॉम्बे जयश्री" के असामान्य नामकरण के पीछे क्या राज़ हैं? ये सब, आज के इस अंक में।

Sep 05, 202311:42
देख चांद की ओर मुसाफ़िर...

देख चांद की ओर मुसाफ़िर...

देख चांद की ओर मुसाफ़िर... आह

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : रचिता देशपांडे

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है 1948 की फ़िल्म ’आग’ का गीत "देख चांद की ओर मुसाफ़िर"। शैलेश मुखर्जी और मीना कपूर की आवाज़ें, सरस्वती कुमार ’दीपक’ के बोल, और राम गांगुली का संगीत। राज कपूर ने अपनी इस पहली निर्मित फ़िल्म के लिए गीतकार और संगीतकार के चुनाव कैसे किए? कैसे मौका मिला राम गांगुली और सरस्वती कुमार ’दीपक’ को इस फ़िल्म से जुड़ने का? क्या ख़ास बात है उस अभिनेता की जिन पर यह गीत फ़िल्माया गया है? कमचर्चित गायक शैलेश मुखर्जी को इस गीत को गाने का मौका कैसे मिला? यह फ़िल्म संगीतकार राम गांगुली की राज कपूर कैम्प की अन्तिम फ़िल्म क्यों साबित हुई? ये सब आज के इस अंक में।

Aug 29, 202314:22
"इस शान-ए-करम का क्या कहना..."

"इस शान-ए-करम का क्या कहना..."

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : सुमेधा अग्रश्री

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुनी है 1999 की फ़िल्म ’कच्चे धागे’ की क़व्वाली "इस शान-ए-करम का क्या कहना"। नुसरत फ़तेह अली ख़ान और साथियों की आवाज़ें, पुरनम इलाहाबादी और आनन्द बक्शी के बोल, और नुसरत फ़तेह अली ख़ान का संगीत। इस क़व्वाली के बहाने जाने नुसरत फ़तेह अली ख़ान और उनके बॉलीवूड सफ़र की दास्तान। इस क़व्वाली के शाइर के नाम के साथ कैसा संशय जुड़ा हुआ है? फ़िल्म की कहानी के संदर्भ में इस क़व्वाली का फ़िल्म में क्या महत्व है? जिन पर यह क़व्वाली फ़िल्मायी गई है, उस फ़िल्मांकन की क्या ख़ास बात है? मूल रचना के ऊपर कौन सी अतिरिक्त लाइनें इस क़व्वाली में जोड़ी गई हैं? ये सब आज के इस अंक में।

Aug 22, 202313:15
"वन्देमातरम..."

"वन्देमातरम..."

आलेख : सुजॉय चटर्जी।।

वाचन : मीनू सिंह।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।।

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है 1952 की फ़िल्म ’आनन्दमठ’ में सम्मिलित, कालजयी देशभक्ति गीत "वन्देमातरम"। लता मंगेशकर, हेमन्त कुमार और साथियों की आवाज़ें, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के बोल, और हेमन्त कुमार का संगीत। अठारहवीं शताब्दी का सन्यासी विद्रोह, बंकिम चन्द्र का ’आनन्दमठ’ और ’वन्देमातरम’, फ़िल्मकार हेमेन गुप्ता का क्रान्तिकारी गतिविधियों की वजह से सात वर्ष कारावास और फिर 1952 में उनका ’आनन्दमठ’ फ़िल्म का निर्देशन। कैसा ताना-बाना बुना हुआ है इन सब का आपस में? क्या रिश्ता था हेमेन गुप्ता और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का? फ़िल्म ’आनन्दमठ’ के लिए संगीतकार हेमन्त कुमार को ही क्यों चुना गया? ’वन्देमातरम’ के मूल गीत के पाँच छन्दों में से किन छन्दों को फ़िल्मी संस्करण में जगह मिली है? ’वन्देमातरम’ के 150-साल पूर्ति पर किस फ़िल्म का निर्माण इन दिनों चल रहा है? ये सब आज के इस अंक में।

Aug 15, 202315:48
" जाने बलमा घोड़े पे क्यूँ सवार है...."

" जाने बलमा घोड़े पे क्यूँ सवार है...."

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : मुकुल तिवारी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष 2022 की फ़िल्म ’क़ला’ का गीत "जाने बलमा घोड़े पे क्यूँ सवार है"। सिरीशा भागवतला की आवाज़, अमिताभ भट्टाचार्य के बोल और अमित त्रिवेदी का संगीत। फ़िल्म की लेखिका व निर्देशिका अन्विता दत्त स्वयम एक सफल गीतकार होते हुए भी इस फ़िल्म के गीतों के लिए इस दौर के कई नामी गीतकारों से गाने क्यों लिखवाये गए? क्या है इस फ़िल्म की कहानी, और इस गीत का कहानी में क्या महत्व है, और यह कहानी के किस मोड़ पर आता है? कैसे मौका मिला सिरीशा भागवतला को इस फ़िल्म में गाने का? इस गीत में गुज़रे दौर के किन संगीतकारों का स्टाइल महसूस किया जा सकता है? इस गीत के साथ अनुष्का शर्मा और विराट कोहली से जुड़ी वह कौन सी घटना है जो सिरीशा के लिए यादगार है? ये सब, आज के इस अंक में।

Aug 01, 202317:07
महेन्द्र कपूर के गाये देश भक्ति गीत

महेन्द्र कपूर के गाये देश भक्ति गीत

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : RJ गीत

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज का अंक है ख़ास क्योंकि आज हम आ पहुँचे हैं इस सीरीज़ के 125-वें अंक पर। यानी कि ये है ’एक गीत सौ अफ़साने’ का हीरक-रजत जयन्ती अंक। तो फिर कुछ ख़ास तो बनता है इस अंक के लिए, है ना? और दोस्तों, यह सप्ताह हमारे स्वतंत्रता दिवस का सप्ताह भी है। तो क्यों ना इन दो ख़ास मौकों को मिले-जुले रूप से मनाये जाये! आज के अंक में हम किसी एक गीत के बजाय एक विषय को लेकर उपस्थित हुए हैं। जी हाँ, पार्श्वगायक महेन्द्र कपूर के गाये हुए देशभक्ति गीत। फ़िल्मी देशभक्ति गीतों में महेन्द्र कपूर का योगदान सर चढ़ कर बोलता है। तो जानिये उनके गाये ऐसे गीतों के बारे में आज के इस अंक में।


Aug 01, 202318:30
"तू नज़्म नज़्म सा मेरे होठों पे ठहर जा...."

"तू नज़्म नज़्म सा मेरे होठों पे ठहर जा...."

"तू नज़्म नज़्म सा मेरे होठों पे ठहर जा...."

शोध और आलेख _- सुजॉय चटर्जी

वचन और प्रस्तुति - संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष 2017 की फ़िल्म ’बरेली की बर्फ़ी’ का गीत "तू नज़्म नज़्म सा मेरे होठों पे ठहर जा"। अर्को की आवाज़, अर्को के ही बोल और उन्हीं का संगीत। MBBS की डिग्री और गोल्ड मेडल लेकर अर्को कैसे फ़िल्म जगत में संगीतकार, गीतकार और पार्श्वगायक बने? इस गीत का मुखड़ा और इसके अन्तरे अलग-अलग समय काल में क्यों लिखे गए? इस गीत में कौन सी बड़ी ग़लती हुई है? इस गीत के कितने संस्करण हैं? फ़िल्म बरेली की बर्फ़ी’ के इस गीत और इस फ़िल्म से जुड़ी कुछ और बातें, आज के इस अंक में।

Jul 25, 202314:28
" हाँ मैंने छू कर देखा है...."

" हाँ मैंने छू कर देखा है...."

" हाँ मैंने छू कर देखा है...." फिल्म ब्लैक

आलेख : सुजॉय चटर्जी।।

वाचन : ए.दिव्या।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।।

नमस्कार दोस्तों , ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़ि ल्म और ग़ैर-फ़ि ल्म-संगीत की रचना प्रक्रि या और उनके वि भि न्न पहलुओंसे सम्बन् त रोचक प्रसंगोंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैकबै इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोध र्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़सा ने’ की यह श्रॄंखला । आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष 2005 की फ़ि ल्म ’ब्लैक ’ का गीत "हाँ मैंने छू कर देखा है"। गायत्री अय्यर की आवाज़, प्रसून जोशी के बोल और मॉण्टी शर्मा का संगी गीत। किस तरह से फ़ि ल्म ’ब्लैक’ के लिए इस एकमात्र गी त की योजना बनी ? इस गीत के कम्पोज़ि शन में मॉण्टी शर्मा ने अपने दादा राम प्रसाद शर्मा के सिखाये किस शिक्षा का प्रयोग किया ? उत्कृष्ट लेखनी और गायकी के बावजूद प्रसून जोशी और गायत्री अय्यर को उस साल फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड्स में नॉमिनेशन क्यों नहीं मिले? इस गीत की रेकॉर्डिंग से जुड़ी कौन सी बात गायत्री अय्यर ने बतायी ? फ़ि ल्म ’ब्लैक’ से जुड़ी और भी कई बातें, ये सब आज के इस अंक में।

Jul 18, 202314:10
" संदेसे आते हैं, हमें तड़पाते हैं...."

" संदेसे आते हैं, हमें तड़पाते हैं...."

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : रीतेश खरे 'सब्र'

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष 1997 की फ़िल्म ’बॉर्डर’ का गीत "संदेसे आते हैं, हमें तड़पाते हैं, के घर कब आओगे"। रूप कुमार राठौड़, सोनू निगम और साथियों की आवाज़ें, जावेद अख़्तर के बोल और अनु मलिक का संगीत। कैसे रचा गया यह कालजयी गीत? इस गीत की धुन कैसे तय हुई? गीत का वह कौन सा हिस्सा था जिसे लिख कर जावेद अख़्तर को लगा कि अब इसकी धुन बनाने में अनु मलिक को मुश्किल होगी? जे. पी. दत्ता ने ऐसा क्या दिखाया जिनसे प्रभावित होकर अनु मलिक ने एक से एक बेहतरीन गाने इस फ़िल्म के लिए रच डाले? सोनू निगम और रूप कुमार राठौड़, तथा इस गीत को मिलने वाले तमाम इनाम। ये सब आज के इस अंक में।

Jul 11, 202317:54
" शाम रंगीन हुई है तेरे आंचल की तरह...."

" शाम रंगीन हुई है तेरे आंचल की तरह...."

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : मातृका

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष 1981 की फ़िल्म ’कानून और मुजरिम’ का गीत "शाम रंगीन हुई है तेरे आंचल की तरह"। उषा मंगेशकर और सुरेश वाडकर की आवाज़ें, अहमद वसी के बोल और सी. अर्जुन का संगीत। कौन-कौन रहे इस कमचर्चित फ़िल्म के निर्माण, निर्देशन और अभिनय से जुड़े? जानिये गीतकार अहमद वसी के बारे में। संगीतकार सी. अर्जुन और पार्श्वगायिका उषा मंगेशकर का कैसा साथ रहा? इस गीत के फ़िल्मांकन में कैसी त्रुटियाँ हुईं? इस गीत में नायिका का मेक-अप और हेयर-स्टाइल किस जानी-मानी अभिनेत्री जैसा किया गया? ये सब आज के इस अंक में।

Jul 04, 202315:11
" क़समे हम अपनी जान की खाये चले गए...."

" क़समे हम अपनी जान की खाये चले गए...."

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : रचित देशपांडे

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष 1973 की फ़िल्म ’मेरे ग़रीब नवाज़’ की ग़ज़ल "क़समे हम अपनी जान की खाये चले गए"। अनवर की आवाज़, महबूब सरवर के बोल और कमल राजस्थानी का संगीत। किस तरह से कमल राजस्थानी और अनवर का साथ बना? इस ग़ज़ल से पहले कमल राजस्थानी अनवर से कौन सा काम लेते थे? इस ग़ज़ल के संदर्भ में अनवर और मोहम्मद रफ़ी के बीच कैसी अदला-बदली हुई? रफ़ी साहब ने अनवर की अपनी जैसी आवाज़ सुन कर अपने सेक्रेटरी से क्या कहा था? इस ग़ज़ल के जारी होने के बाद तमाम लोगों की अनवर के बारे में किस तरह की राय बनी? अनवर एक बार रफ़ी साहब के घर जा कर वार्तालाप के बीच में ही क्यों भाग खड़े हुए? ये सब आज के इस अंक में।

Jun 27, 202314:04