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If you can keep your head Rudyard Kipling

Poetry World PodcastsJan 23, 2022

00:00
02:17
If you can keep your head 
Rudyard Kipling

If you can keep your head Rudyard Kipling

If you can keep your head
Rudyard Kipling

Voice over artist : Janet
Jan 23, 202202:17
Dua by Faiz Ahmed Faiz

Dua by Faiz Ahmed Faiz

Dua by Faiz Ahmed Faiz - Voice by Deepti Chander
Jan 12, 202201:32
Akele by Gulzaar

Akele by Gulzaar

Akele by Gulzaar - Voice by Deepti Chander
Jan 12, 202200:57
Kitabein Jhankti Hai by Gulzaar

Kitabein Jhankti Hai by Gulzaar

Kitabein Jhankti Hai by Gulzaar - Voice by Deepti Chander
Jan 12, 202202:15
Zindagi se darte ho - Deepti Chander

Zindagi se darte ho - Deepti Chander

Zindagi se darte ho - Deepti Chander - Poetry World Org
Jan 11, 202202:40
Mai Askh hun - Chuski

Mai Askh hun - Chuski

Book by Ankeeta Sahani , Audio Created by - Itishree Creation
Apr 02, 202100:22
Haal - Chuski

Haal - Chuski

Book by Ankeeta Sahani , Audio Created by - Itishree Creation
Apr 02, 202100:22
Aitbaar - Chuski

Aitbaar - Chuski

Book by Ankeeta Sahani , Audio Created by - Itishree Creation
Apr 02, 202100:27
Episode 2 - Chuski

Episode 2 - Chuski

Created by - Itishree Creation
Apr 02, 202101:13
Hum aur wo

Hum aur wo

Poetry from Do ghoont Zindagi book by Supriya Shukla
Mar 21, 202103:58
Kyun dar gya mai itna

Kyun dar gya mai itna

Poetry from Do ghoont Zindagi book by Supriya Shukla
Mar 21, 202102:30
Teri yaad

Teri yaad

Poetry from Do ghoont Zindagi book by Supriya Shukla
Mar 21, 202102:50
Hamesha der kar deta hun mai - Munir Niazi

Hamesha der kar deta hun mai - Munir Niazi

हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वा'दा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
बदलते मौसमों की सैर में दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में.....
Mar 15, 202101:15
Aa gyi yaad shaam dhalte hi - Munir Niazi

Aa gyi yaad shaam dhalte hi - Munir Niazi

आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही
खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े
इक ज़रा सी हवा के चलते ही
कौन था तू कि फिर न देखा तुझे
मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही
ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से
माह-ए-शब-ताब के निकलते ही
तू भी जैसे बदल सा जाता है
अक्स-ए-दीवार के बदलते ही
ख़ून सा लग गया है हाथों में
चढ़ गया ज़हर गुल मसलते ही
Mar 15, 202100:53
TUM - Someone special

TUM - Someone special

From the book - DO GHOONT ZINDAGI - Supriya Shukla
Mar 10, 202102:31
Mai insaan hun

Mai insaan hun

From the book - Do ghoont Zindagi by Supriya Shukla
Mar 10, 202102:37
Chuski book Intro

Chuski book Intro

Chuski by Ankeet Sahani
Mar 09, 202100:40
Shayari By Akansha

Shayari By Akansha

Akansha ( shyahi_ki_ dhaar )
Mar 08, 202101:48
Kuch ishq kiya kuch kaam kiya - Faiz Ahmad Faiz | कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Kuch ishq kiya kuch kaam kiya - Faiz Ahmad Faiz | कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
वो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे
हम जीते-जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आ कर हम ने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया
Mar 05, 202100:43
आवारा - असरार-उल-हक़ मजाज़ 
(ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ)

आवारा - असरार-उल-हक़ मजाज़ (ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ)

शहर की रात और मैं नाशाद ओ नाकारा फिरूँ
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

झिलमिलाते क़ुमक़ुमों की राह में ज़ंजीर सी
रात के हाथों में दिन की मोहनी तस्वीर सी
मेरे सीने पर मगर रखी हुई शमशीर सी
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

ये रुपहली छाँव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़ी का तसव्वुर जैसे आशिक़ का ख़याल
आह लेकिन कौन जाने कौन समझे जी का हाल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

फिर वो टूटा इक सितारा फिर वो छूटी फुल-जड़ी
जाने किस की गोद में आई ये मोती की लड़ी
हूक सी सीने में उठ्ठी चोट सी दिल पर पड़ी
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

रात हँस हँस कर ये कहती है कि मय-ख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ के काशाने में चल
ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

हर तरफ़ बिखरी हुई रंगीनियाँ रानाइयाँ
हर क़दम पर इशरतें लेती हुई अंगड़ाइयाँ
बढ़ रही हैं गोद फैलाए हुए रुस्वाइयाँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

रास्ते में रुक के दम ले लूँ मिरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊँ मिरी फ़ितरत नहीं
और कोई हम-नवा मिल जाए ये क़िस्मत नहीं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

मुंतज़िर है एक तूफ़ान-ए-बला मेरे लिए
अब भी जाने कितने दरवाज़े हैं वा मेरे लिए
पर मुसीबत है मिरा अहद-ए-वफ़ा मेरे लिए
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

जी में आता है कि अब अहद-ए-वफ़ा भी तोड़ दूँ
उन को पा सकता हूँ मैं ये आसरा भी तोड़ दूँ
हाँ मुनासिब है ये ज़ंजीर-ए-हवा भी तोड़ दूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिए की किताब
जैसे मुफ़्लिस की जवानी जैसे बेवा का शबाब
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

दिल में इक शोला भड़क उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
मेरा पैमाना छलक उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
ज़ख़्म सीने का महक उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

जी में आता है ये मुर्दा चाँद तारे नोच लूँ
इस किनारे नोच लूँ और उस किनारे नोच लूँ
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

मुफ़्लिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों सुल्तान-ए-जाबिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों चंगेज़ ओ नादिर हैं नज़र के सामने
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

ले के इक चंगेज़ के हाथों से ख़ंजर तोड़ दूँ
ताज पर उस के दमकता है जो पत्थर तोड़ दूँ
कोई तोड़े या न तोड़े मैं ही बढ़ कर तोड़ दूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

बढ़ के उस इन्दर सभा का साज़ ओ सामाँ फूँक दूँ
उस का गुलशन फूँक दूँ उस का शबिस्ताँ फूँक दूँ
तख़्त-ए-सुल्ताँ क्या मैं सारा क़स्र-ए-सुल्ताँ फूँक दूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
Mar 05, 202105:07
Sahir Ludhiyanvi - Taj Mahal | ताज महल - साहिर लुधियानवी

Sahir Ludhiyanvi - Taj Mahal | ताज महल - साहिर लुधियानवी

ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मअ'नी
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी
मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा
तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता
मुर्दा-शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
अपने तारीक मकानों को तो देखा होता
अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
लेकिन उन के लिए तश्हीर का सामान नहीं
क्यूँकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़्लिस थे
ये इमारात ओ मक़ाबिर ये फ़सीलें ये हिसार
मुतलक़-उल-हुक्म शहंशाहों की अज़्मत के सुतूँ
सीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूर
जज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँ
मेरी महबूब उन्हें भी तो मोहब्बत होगी
जिन की सन्नाई ने बख़्शी है उसे शक्ल-ए-जमील
उन के प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नुमूद
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़िंदील
ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
Mar 05, 202102:16
Aadminama | आदमी नामा - नज़ीर अकबराबादी

Aadminama | आदमी नामा - नज़ीर अकबराबादी

दुनिया में पादशह है सो है वो भी आदमी
और मुफ़्लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
ज़रदार-ए-बे-नवा है सो है वो भी आदमी
नेमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी
अब्दाल, क़ुतुब ओ ग़ौस वली-आदमी हुए
मुंकिर भी आदमी हुए और कुफ़्र के भरे
क्या क्या करिश्मे कश्फ़-ओ-करामात के लिए
हत्ता कि अपने ज़ोहद-ओ-रियाज़त के ज़ोर से
ख़ालिक़ से जा मिला है सो है वो भी आदमी
फ़िरऔन ने किया था जो दावा ख़ुदाई का
शद्दाद भी बहिश्त बना कर हुआ ख़ुदा
नमरूद भी ख़ुदा ही कहाता था बरमला
ये बात है समझने की आगे कहूँ मैं क्या
याँ तक जो हो चुका है सो है वो भी आदमी
कुल आदमी का हुस्न ओ क़ुबह में है याँ ज़ुहूर
शैताँ भी आदमी है जो करता है मक्र-ओ-ज़ोर
और हादी रहनुमा है सो है वो भी आदमी
मस्जिद भी आदमी ने बनाई है याँ मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और ख़ुत्बा-ख़्वाँ
पढ़ते हैं आदमी ही क़ुरआन और नमाज़ियाँ
और आदमी ही उन की चुराते हैं जूतियाँ
जो उन को ताड़ता है सो है वो भी आदमी
याँ आदमी पे जान को वारे है आदमी
और आदमी पे तेग़ को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुन के दौड़ता है सो है वो भी आदमी
चलता है आदमी ही मुसाफ़िर हो ले के माल
और आदमी ही मारे है फाँसी गले में डाल
याँ आदमी ही सैद है और आदमी ही जाल
सच्चा भी आदमी ही निकलता है मेरे लाल
और झूट का भरा है सो है वो भी आदमी
याँ आदमी ही शादी है और आदमी बियाह
क़ाज़ी वकील आदमी और आदमी गवाह
ताशे बजाते आदमी चलते हैं ख़्वाह-मख़ाह
दौड़े हैं आदमी ही तो मशअ'ल जला के राह
और ब्याहने चढ़ा है सो है वो भी आदमी
याँ आदमी नक़ीब हो बोले है बार बार
और आदमी ही प्यादे हैं और आदमी सवार
हुक़्क़ा सुराही जूतियाँ दौड़ें बग़ल में मार
काँधे पे रख के पालकी हैं दौड़ते कहार
और उस में जो पड़ा है सो है वो भी आदमी
बैठे हैं आदमी ही दुकानें लगा लगा
और आदमी ही फिरते हैं रख सर पे ख़ूनचा
कहता है कोई लो कोई कहता है ला रे ला
किस किस तरह की बेचें हैं चीज़ें बना बना
और मोल ले रहा है सो है वो आदमी
तबले मजीरे दाएरे सारंगियाँ बजा
गाते हैं आदमी ही हर इक तरह जा-ब-जा
रंडी भी आदमी ही नचाते हैं गत लगा
और आदमी ही नाचे हैं और देख फिर मज़ा
जो नाच देखता है सो है वो भी आदमी
याँ आदमी ही लाल-ओ-जवाहर में बे-बहा
और आदमी ही ख़ाक से बद-तर है हो गया
काला भी आदमी है कि उल्टा है जूँ तवा
गोरा भी आदमी है कि टुकड़ा है चाँद-सा
बद-शक्ल बद-नुमा है सो है वो भी आदमी
इक आदमी हैं जिन के ये कुछ ज़र्क़-बर्क़ हैं
रूपे के जिन के पाँव हैं सोने के फ़र्क़ हैं
झमके तमाम ग़र्ब से ले ता-ब-शर्क़ हैं
कम-ख़्वाब ताश शाल दो-शालों में ग़र्क़ हैं
और चीथडों लगा है सो है वो भी आदमी
हैराँ हूँ यारो देखो तो क्या ये स्वाँग है
और आदमी ही चोर है और आपी थांग है
है छीना झपटी और बाँग ताँग है
देखा तो आदमी ही यहाँ मिस्ल-ए-रांग है
फ़ौलाद से गढ़ा है सो है वो भी आदमी
मरने में आदमी ही कफ़न करते हैं तयार
नहला-धुला उठाते हैं काँधे पे कर सवार
कलमा भी पढ़ते जाते हैं रोते हैं ज़ार-ज़ार
सब आदमी ही करते हैं मुर्दे के कारोबार
और वो जो मर गया है सो है वो भी आदमी
अशराफ़ और कमीने से ले शाह-ता-वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कार-ए-दिल-पज़ीर
याँ आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ऐ 'नज़ीर'
और सब में जो बुरा है सो है वो भी आदमी
Mar 05, 202106:32
Gopaldas Neeraj - Famous lines

Gopaldas Neeraj - Famous lines

हर धर्म के आदेश को माना मैंने
दर्शन के हर एक सूत्र को जाना मैंने
जब जान लिया सब कुछ तो ए मेरे नीरज
मैं कुछ भी नहीं जानता ये जाना मैंने

हमें यारों ने क्या क्या समझा
किसी ने कतरा,किसी ने हमें दरिया समझा
सब समझते रहे,जैसा उसे जैसा भाया
किन्तु हम जो थे वही तो न ज़माना समझा

समय ने जब भी अँधेरों से दोस्ती की है
जला के अपना ही घर हमनें रोशनी की है
सुबूत हैं मेरे घर में धुँए के ये धब्बे
कभी यहाँ पे उजालों ने खुदखुशी की है

ज़िन्दगी मैंने गुजारी नहीं सभी की तरह
मैंने हर पल को जिया पूरी इक सदी की तरह
किसी भी आँख का आँसू जो गिरा दामन पर
मैं उसमें डूबा समुंदर में इक नदी की तरह

फौलाद की मूरत भी पिघल सकती है
पत्थर से भी रसधार निकल सकती है
इंसान अगर अपनी पे आ जाये तो
कैसी भी हो तकदीर बदल सकती है

इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में
तुमको लग जाएंगी सदियां हमें भुलाने में
Written And Recites By- Gopal Das Neeraj
Feb 26, 202102:22
हमेशा देर कर देता हूँ मैं - नज़्म

हमेशा देर कर देता हूँ मैं - नज़्म

हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वा'दा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
बदलते मौसमों की सैर में दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में.....— मुनीर नियाज़ी
Feb 22, 202101:00
Rhythmic Rhymes 4

Rhythmic Rhymes 4

Episode 4
Feb 22, 202102:30
Rhythmic Rhymes 3

Rhythmic Rhymes 3

Episode 3
Feb 22, 202101:11
Rhythmic Rhymes 2

Rhythmic Rhymes 2

Episode 2
Feb 22, 202100:09
Rhythmic Rhymes

Rhythmic Rhymes

Episode 1 - presented by Hidden Words
Feb 22, 202100:11
Aahat si koi aae to lagta hai ki tum ho - Jaa Nisaar Akhtar

Aahat si koi aae to lagta hai ki tum ho - Jaa Nisaar Akhtar

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो

जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो

संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का
झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो

ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नद्दी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो

जब रात गए कोई किरन मेरे बराबर
चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो
Feb 18, 202101:52
Seena me jalan, aankhon me toofan sa kyun hai - Sheheryaar

Seena me jalan, aankhon me toofan sa kyun hai - Sheheryaar

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँडे
पत्थर की तरह बे-हिस ओ बे-जान सा क्यूँ है

तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है

हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-पशेमान पशेमान सा क्यूँ है

क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है
Feb 18, 202101:47
Hamara dil savere ka sunehra jaam ho jae - Bashir Bhadr

Hamara dil savere ka sunehra jaam ho jae - Bashir Bhadr

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए

कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए

समुंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दे हम को
हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

~ बशीर भद्र
Feb 18, 202102:03
Kaun aaya hai yahan koi na aaya hoga - Kaif Bhopali

Kaun aaya hai yahan koi na aaya hoga - Kaif Bhopali

कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क
कोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा

इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल
तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा

दिल की क़िस्मत ही में लिक्खा था अंधेरा शायद
वर्ना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा

गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो
आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा

खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे
चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा

'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा

~ कैफ़ भोपाली
Feb 18, 202102:08
Ranjish hi sahi - रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ | Ghazal by Ahmad Faraz | Poetry World Org

Ranjish hi sahi - रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ | Ghazal by Ahmad Faraz | Poetry World Org

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ - Ahmad Faraz
Feb 04, 202102:08
Supriya shukla

Supriya shukla

Writer of Do Ghoont Zindagi book available on amazon
Jan 26, 202102:44