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न दैन्यं न पलायनम्

न दैन्यं न पलायनम्

By Praveen Pandey

दिखा हुआ लिखना, लिखा हुआ पढ़ना, पढ़ा हुआ कहना, कहा हुआ सुनना, सुना हुआ मनना और तब उसे जीना।
देखिये तो अभिव्यक्ति के कितने सुर हैं।
व्यस्त जीवन है, लिखने पढ़ने का समय नहीं है, चलिये कुछ सुन लेते हैं।
यदि पढ़ना चाहें या पढ़ते हुये सुनना चाहें तो www.praveenpandeypp.com पर जा सकते हैं।
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लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं

न दैन्यं न पलायनम्Jul 30, 2021

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03:21
लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं

लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं

युवा उत्साहित होता है, समर्थ होता है। उसे उँगली पकड़कर ले चलने वाला कोई नहीं चाहिये। उसे तो एक अवसर चाहिये, जहाँ पर वह अपनी ऊर्जा और सामर्थ्य दिखा सके। युवा मन की इस छोटी सी आकांक्षा को समझने में हम बहुधा असफल ही रहे हैं। पिछले कई दशकों से, विशेषकर युवावस्था में, जब अवसरों के स्थान पर रेवड़ियाँ बाँटी जाती थीं तो मन क्षुब्ध हो उठता था। परिस्थितियाँ बदली हैं, विकास को समझा जा रहा है, उस पर चर्चा हो रही है, पर फिर भी कुछ लोग विकास के उस पूर्वरोग से ग्रसित हैं, रेवड़ियाँ बाटने वाले रोग से। कविता काफी पहले की लिखी है पर आज भी प्रासंगिक है। सुनिये “लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं”।

पढ़ने के लिये - http://www.praveenpandeypp.com/2021/07/blog-post_31.html

Jul 30, 202103:21
निर्णयों के वैकल्पिक विश्व

निर्णयों के वैकल्पिक विश्व

आज मैं बात करूँगा निर्णयों की और उन निर्णयों के उजले और स्याह पक्षों पर चर्चा होनी चाहिये कि नहीं, बात उसकी भी करूँगा। क्योंकि विश्व एक ही होता है, काल एक ही निष्कर्ष देता है, मन में सदा ही प्रश्न रहता है कि काश यदि यह ऐसा नहीं होता तो क्या निष्कर्ष होते? मन है तो कल्पनाशीलता है। पता नहीं कितना लाभ है उस पर चर्चा करने का जो कि हुआ ही नहीं। चर्चा न करने के इच्छुक जन बड़ी ही पतली गली से निकल लेते हैं। ऐसे ही विविध पक्षों पर आधारित है आज का पॉडकास्ट और शीर्षक है “निर्णयों के वैकल्पिक विश्व”।

पढ़ने के लिये - http://www.praveenpandeypp.com/2021/07/blog-post_29.html

Jul 28, 202109:31
पिता दीन्ह मोहि कानन राजू

पिता दीन्ह मोहि कानन राजू

आज बात करेंगे राम के उस कठिन क्षण की जब वह अपनी माँ को वन जाने का समाचार सुनाने जाते हैं। शोक उत्पन्न करने वाला सत्य तो अप्रिय ही कहा जायेगा ना। कहते हैं, सत्यं ब्रूयात प्रियमं ब्रूयात, न ब्रूयात अप्रियमं सत्यम्। माँ को अप्रिय लगेगा, शोक होगा, आँसू छलकेंगे, पर सत्य तो फिर भी कहना ही है। वह क्षण कितना तीक्ष्ण होगा जब राम अपनी माँ को यह बात बतायेंगे। उस क्षण तक पहुँचने का प्रयास किया है, उस मनोदशा को व्यक्त करने का प्रयास किया है। वाल्मीकि जैसा सपाट और तथ्यात्मक भी नहीं और तुलसी जैसा भावात्मक भी नहीं। बस ठीक वैसा ही, जैसा मन ने अनुभव किया, थोड़ा माँ कौशल्या की तरह, थोड़ा श्री राम की तरह। सुनिये, “पिता दीन्ह मोहि कानन राजू” अर्थात पिताजी ने मुझे वन का राज्य दिया है।


पढ़ने के लिये - http://www.praveenpandeypp.com/2021/07/blog-post_27.html

Jul 26, 202108:24
भीष्म उठ निर्णय सुनाओ

भीष्म उठ निर्णय सुनाओ

भीष्म का अभिशाप यह था कि उन्होने जिस कलह से कुल को बचाने के लिये अपने सुखों की बलि देते हुये भीष्म प्रतिज्ञा ली, उसी कुल के संहार महाभारत के प्रथम सेनानायक बने। जिस कुल की कलह कम करने के लिये अपना मुँह नहीं खोले, उसी कुल का पूर्ण विनाश युद्धक्षेत्र में लेटे हुये देखा। इस विषय पर अध्याय लिखे जा सकते हैं कि भीष्म का कितना दोष था। मन पर मानता नहीं है कि कोई बुजुर्ग जो श्रेष्ठ था, वह उस समय भी मौन क्यों साधे रहा जब सबके नेत्र उनकी ओर टिके थे। भविष्य के किस कोने से यह घटना बिना उत्तर दिये निकल जाने दी जायेगी?

देश के साथ भी यही हो रहा है। दुर्योधनों की ईर्ष्यायें चहुँ ओर छिटक छिटक विनाशोन्मुख हैं, समाज के भीष्म अपनी व्यक्तिगत निष्ठायें समेटे बैठे हैं। जिनकी वाणी में ओज है, वे भविष्य के संकोच में बैठे हैं।

हम सबको एक दिन भीष्म का दायित्व निभाना है। जब पीढ़ियाँ हमारा मौन ऐसे विषयों पर देखेंगी, जहाँ पर बोलना अनिवार्य था, कोसे जाने के अतिरिक्त और क्या निष्कर्ष होगा हमारा। यह उद्गार व्यक्तिगत नहीं, सार्वजनिक हैं और अपने भविष्य के दायित्वों की कठिन प्रारूप सज्जा है। क्रोध था, व्यक्त हुआ, पर यदि यह अगला महाभारत बचा सके तो यह भी सात्विक माँनूगा मैं।

पढ़ने के लिये - http://www.praveenpandeypp.com/2021/07/blog-post_24.html


Jul 23, 202104:05
याद बहुत ही आते पृथु तुम

याद बहुत ही आते पृथु तुम

आज युवा पिता के उस सुख का वर्णन करूँगा जो रह रह कर याद आता है। बच्चे जब छोटे होते हैं, उनकी कल्पना, उनकी क्षमता और उनका उत्साह कहीं बड़ा होता है। छोटे बड़े उत्पात, अनूठे हठ, विचित्र अभिरुचियाँ और ऊर्जा का अपरिमित उछाह, यही सब रह रहकर ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न कर देते हैं कि पूरा अस्तित्व ही सुखविभोर हो जाता है।

बचपन का आनन्द सच में अद्भुत होता है। अपनी ही एक लगन और मन में दिनभर के लिये उत्पातों की लम्बी सूची।

पृथु एक बार माँ के साथ अपनी नानी के घर गये थे। पिता घर में अकेला था। एकान्त था पर घर के सारे भागों से पृथु के कृत्य, स्मृतियाँ सामने उपस्थित हो जाते। उसी भावातिरेक में लिखी पंक्तियाँ। पृथु तो अभी २१ वर्ष के हो गये हैं पर ये पंक्तियाँ लगभग २० वर्ष पहले लिखी थीं। आप भी सुनिये, संभवतः आपके भीतर का युवा पिता पुनः जाग जाये।

पढ़ने के लिये -

http://www.praveenpandeypp.com/2021/07/blog-post_17.html

Jul 16, 202107:03
माणिक दृग नीर बिखेरे हैं

माणिक दृग नीर बिखेरे हैं

सहजीवन एक माध्यम है जहाँ हमारे जीवन के पथ साझा हो जाते हैं। दुख बाटने के लिये कोई मिल जाता है तो सुख में प्रसन्न होने के लिये भी कोई रहता है। इस स्वतन्त्र और उन्मुक्त आमन्त्रण में विगत दुख घुल जाने चाहिये पर कभी कभी कोई पुरानी गाँठ रह जाती है। स्वतः व्यक्त न हो तो पूछना पड़ता है। गाँठ जितनी जटिल हो उतना समय भी लगता है। तब कई बार पूछना पड़ता है, विश्वास दिलाना पड़ता है, समाधान दिखलाना पड़ता है, दोनों को ही, एक दूसरे के लिये। उसी को व्यक्त करने का छोटा सा प्रयास प्रस्तुत है।

पढ़ने के लिये 

http://www.praveenpandeypp.com/2010/09/blog-post_08.html

Jul 10, 202103:15
मुरलीधारी मधुर मनोहर

मुरलीधारी मधुर मनोहर

सेवक और स्वामी का सम्बन्ध बड़ा रोचक है। सेवक को अपना अहं निकाल कर समर्पण करना पड़ता है। आश्रय पाने की योग्यता न भी हो पर यह समर्पण सम्बन्ध जोड़ ही देता है। सेवक यदि अपना स्थान स्वीकार कर ले तो किस बात का अहंकार। जब ज्ञात हो कि प्रभु के पास वे सब गुण हैं जो आपको वांछित हैं तब किस बात का अहंकार। सेवक की ऐसी ही एक स्वीकारोक्ति प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, अपने मधुर, मनोहर मुरलीधारी से।

यदि पढ़ना चाहें -

http://www.praveenpandeypp.com/2010/09/blog-post.html

Jul 03, 202102:20
जन्म अयोध्या पाते राम
Jun 25, 202104:47