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Kanaklata Barua: 18 साल की वीरांगना जिसने जीवन का बलिदान दे दिया, पर तिरंगे को झुकने नहीं दिया!

See PositiveJan 02, 2023

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Kanaklata Barua: 18 साल की वीरांगना जिसने जीवन का बलिदान दे दिया, पर तिरंगे को झुकने नहीं दिया!

Kanaklata Barua: 18 साल की वीरांगना जिसने जीवन का बलिदान दे दिया, पर तिरंगे को झुकने नहीं दिया!

भारत ने संग्राम का वो दौर भी देखा है जब देश के बच्चे, युवा और बुजुर्ग, सभी में क्रांति की लहर दौड़ रही थी। फिर वो चाहे उत्तर का अवध हो, पश्चिम का राजपूताना हो, दक्षिण का मद्रास हो या फिर पूर्व का बंगाल। सभी जगह आजादी की चाहत क्रांतिकारियों में खून बनकर में दौड़ रही थी। इन कहानियों में एक कहानी कनकलता बरूआ (Kanaklata Barua) की भी है। जिन्होंने जान की परवाह किए बिना देशप्रेम की अद्भत मिसाल पेश की जिसे वर्षों तक भुलाया नहीं जा सकता है।

22 दिसंबर 1924 को असम में कनकलता (Kanaklata Barua) का जन्म कृष्णकांत बरूआ के घर हुआ। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया। पढ़ाई में काफी तेज कनकलता का लालन-पालन उनकी नानी ने किया। इन्हीं दिनों असम के प्रसिद्ध कवि ज्योति प्रसाद अग्रवाल के गीत देश भर के युवाओं को प्रेरित कर रहे थे। उनकी रचनाओं से कनलता भी काफी प्रभावित हुईं। और उनके बाल मन में देशभक्ति के बीज अंकुरित हुए।

मई 1931 की बात है। असम के गमेरी गाँव में क्रांतिकारी विद्यार्थियों ने मिलकर रैयत सभा का आयोजन किया। इसकी अध्यक्षता कवि ज्योति प्रसाद अग्रवाल कर रहे थे। इसी सभा में कनकलता (Kanaklata Barua) के मामा देवेन्द्र नाथ शामिल होने वाले थे। जब कनकलता को ये बात पता चली तो ज़िद कर मात्र 7 साल की कनकलता भी उस सभा में शामिल हो गईं। अंग्रेजों ने सभा में शामिल सभी क्रांतिकारियों पर लाठी बरसाए और उन्हें जेल में डाल दिया। यहीं से नन्हीं कनकलता की, आजादी के संग्राम में कूदने की औपचारिक शुरूआत हुई।

8 अगस्त 1942 को “अंग्रेज़ों भारत छोड़ो” प्रस्ताव परित हुआ। देश के कोने-कोने में इसकी चिंगारी फैल गयी और ज्योति प्रसाद अग्रवाल के कंधों पर आ गई। उन्होंने एक गुप्त सभा का आयोजन किया। इस सभा में यह तय किया गया, कि 28 सितंबर 1942 को असम के तेजपुर की कचहरी पर तिरंगा फहराया जाएगा। तिरंगा फहराने वाले दल के नेतृत्व के लिए 18 साल की कनकलता को चुना गया।

28 सितंबर की सुबह जब क्रांतिकारियों का जत्था कचहरी के सामने पहुंचा तब अंग्रेज सिपाही ने चेतावनी दी " कोई अगर एक इंच भी आगे बढ़ा तो उसे गोलियों से छलनी कर दिया जाएगा। " निडर कनकलता हाथों में भारत का तिरंगा लिए आगे बढ़ती रही। उन्होंने चेतावनी के बावजूद अपने कदम कचहरी की तरफ बढ़ाए, उनके साथ क्रांतिकारियों का जुलूस आगे बढ़ा। जैसे ही कनकलता आगे बढ़ीं अंग्रेज सिपाहियों ने गोलियों की बौझार कर दी। पहली गोली कनकलता की छाती पर लगी पर वो रूकी नहीं, उनके साहस और बलिदान ने जुलूस को आगे बढ़ने का बल दिया। कनकलता (Kanaklata Barua) का गोलियों से छलनी शरीर जमीन पर गिरता उससे पहले क्रांतिकारी रामपति राजखोवा ने तिरंगा थामा और कचहरी पर भारतीय झंडा फहरा दिया। कनकलता भारत माता की जय कहते हुए शहीद हो गईं।

कनकलता का बलिदान हमेशा अमर रहेगा। ये उनका साहस ही था जिसने कई युवाओं को आजादी के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। भले ही कनकलता बरूआ (Kanaklata Barua) कम उम्र में ही शहीद हो गईं। पर वे भारतीयों के दिल में हमेशा अमर रहेंगी।

Jan 02, 202303:44
मराठा साम्राज्य को पुन: स्थापित करने वाली वीर शासिक: रानी ताराबाई

मराठा साम्राज्य को पुन: स्थापित करने वाली वीर शासिक: रानी ताराबाई

भारतीय इतिहास इस बात का गवाह है, कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जितनी भूमिका पुरुष वीरों की रही, उतनी ही महिलाओं की भी भागीदारी रही है। ऐसी ही वीर महिलाओं में से एक थीं रानी ताराबाई।

Oct 31, 202202:59
IIIT-Lucknow student bags the institute's highest-ever package of Rs 1.2 crore with an Amazon job.

IIIT-Lucknow student bags the institute's highest-ever package of Rs 1.2 crore with an Amazon job.

HIGHLIGHTS:

· An IIIT student in Lucknow has bagged highest-ever annual package of Rs 1.2 crore.

· Amazon has employed Abhijeet Dwivedi as a software development engineer in Dublin

· the institute was able to place all of its students(100% placement)

The Indian Institute of Information and Technology (IIIT) in Lucknow has awarded a student the institute's highest-ever annual package of Rs 1.2 crore. Amazon has employed Abhijeet Dwivedi as a software development engineer in Dublin, Ireland.

Setting a new record

With his astonishing yearly package, Abhijeet, who is in his final year of B.Tech in Information Technology, has shattered all prior placement records. Soft talents, according to the Prayagraj native, helped him ace the interview.

Not just technical but also work on enhancing soft skills

He told that, "I watched various videos to prepare myself for the interview." "Soft skills are extremely important, thus engineering graduates should not believe that they only require technical knowledge." "Body language and communication skills are also key," he continued.

A healthy advice to all job seekers

Abhijeet also offered some advice to fellow graduates looking for work. "To get a decent job, one should work on specific things." Make relationships, such as maintaining in touch with seniors to learn about career prospects and getting interview pointers from them," he suggested. He also recommended that students develop profiles on well-known job boards that are routinely updated with fresh job postings.

100% placement

This has been a memorable year for IIIT-Lucknow, not just because of Abhijeet's record-breaking Amazon pay, but also because the institute was able to place all of its students. Sixty-one students were placed, with four opting for further education.

Average annual salary package this year

Furthermore, the average annual salary package this year was Rs 26 lakh, which was greater than prior years. According to Dr. Arun Mohan Sherry, director of IIIT-Lucknow, the maximum salary package until last year was roughly Rs 40 lakh. "This demonstrates that we are on the right track," he remarked.

Apr 11, 202202:01
NADABET TOURISM: वाघा बार्डर की तरह अब गुजरात के नडाबेट से भी दर्शक देख पाएंगे भारतीय शौर्य की झलक!

NADABET TOURISM: वाघा बार्डर की तरह अब गुजरात के नडाबेट से भी दर्शक देख पाएंगे भारतीय शौर्य की झलक!

HIGHLIGHTS

· NADABET से दर्शक देख सकेंगे भारत पाक-सीमा

· गृहमंत्री अमित शाह ने NADABET व्यू प्वाइंट का किया उद्धाटन

· वाघा बार्डर की तर्ज पर डेवलप होगा NADABET

NADABET में भारत-पाक अंतरर्राष्ट्रीय सीमा पर व्यू प्वाइंट (view point) दर्शकों के लिए खोल दिया गया है। वाघा बार्डर की तर्ज पर गुजरात में बना यह व्यू प्वाइंट (view point) भारतीय शौर्य की झलक दिखाएगा। इस व्यू प्वाइंट (view point) का उद्धाटन भारतीय गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा 10 अप्रैल को किया गया। नडाबेट (NADABET) में वाघा बार्डर की तरह ही दर्शक दीर्घा, फोटो गैलरी और हथियारों-टैंकों का प्रदर्शन किया जाएगा। नडाबेट (NADABET) प्वाइंट भारत-पाक सीमा से 20-25 किमी पहले बनाया गया है।

नडाबेट (NADABET) व्यू प्वाइंट

नडाबेट (NADABET) गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित है। नडाबेट को भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दर्शनीय स्थल (व्यूप्वाइंट) के रूप में तैयार किया गया है। नडाबेट (NADABET) अहमदाबाद से लगभग 240 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गुजरात का पहला ऐसा बॉर्डर प्वाइंट है, जिसे वाघा बार्डर की तरह तैयार किया गया है।

गुजरात पर्यटन विभाग की तरफ से इस प्रोजेक्ट के लिए 125 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। केंद्र सरकार की तरफ से भी इसे सहयोग मिला है। नडाबेट (NADABET) प्वाइंट की मदद से गुजरात सरकार इस स्थल को पर्यटन के लिहाज से डेवलप करेगी। साथ ही इसे स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की तर्ज पर भी विकसित किया जाएगा।

TEXT FOR VIDEO

· NADABET व्यू प्वाइंट

· गुजरात के बनासकांठा जिले में बना है NADABET व्यू प्वाइंट

· भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीम से 20-25 किमी है दूरी

· वाघा-अटारी बॉर्डर की तरह किया गया है विकसित

· दर्शक भारतीय सेना का शौर्य, फोटो गैलरी, हथियारों-टैंकों के माध्यम से देख सकेंगे।

Apr 11, 202201:08
रानी वेलू नचियार: वह रानी जिन्होंने बनाई महिलाओं की सेना, और 7 वर्ष लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेजों से वापस छीना अपना साम्राज्य

रानी वेलू नचियार: वह रानी जिन्होंने बनाई महिलाओं की सेना, और 7 वर्ष लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेजों से वापस छीना अपना साम्राज्य

इतिहास में रानी लक्ष्मीबाई का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। भारत का हर व्यक्ति यह जानता है कि उन्होंने 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। और अपने प्राणों की आहूति दे दी। लेकिन ऐसी ही एक क्रांतिकारी रानी वेलु नचियार थीं जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई से भी पहले अंग्रेजों को भारत की नारी शक्ति का अहसास करा दिया था। उन्होंने न सिर्फ अंग्रेजों से मुकाबला किया बल्कि अपने साम्राज्य को वापस अंग्रेजों से छीना भी। दक्षिण के राज्य रामनाड में जन्मी वेलु बचपन से ही युद्ध विद्या में निपुण थीं, साथ ही अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और उर्दू जैसी भाषाओं में भी उनकी अच्छी पकड़ थी। वेलु विवाह के बाद शिवगंगा की रानी बनीं, वही शिवगंगा जो इतिहास में ‘कलैयार कोली युद्ध’ के नाम से काफी प्रसिद्ध है।

साल 1772 की बात है, शिवगंगा साम्राज्य और अंग्रेजों के बीच हुए भीषण युद्ध में, शिवगंगा के राजा की हार हुई और वे शहीद हो गए। अंग्रेजों को शिवगंगा पर हावी होता देख रानी वेलु ने यह तय किया, कि वे अपने साम्राज्य की रक्षा करेंगी। लेकिन रानी यह भी जानती थीं कि उनके पास फिलहाल सेना और संसाधन की कमी थी। इसीलिए उन्होंने अपनी बेटी और मारूथ भाईयों जो कि उनके अंगरक्षक थे , उनके साथ तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के विरुप्पाची में आश्रय ले लिया।

रानी वेलु नचियार शिवगंगा को अंग्रेजों से वापस चाहती थीं और इसीलिए उन्होंने विरुप्पाची से ही अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने मारुथु भाइयों के साथ मिलकर सेना बनाई और इस काम में उनकी मदद मैसूर के शासक हैदर अली और गोपाल नायकर ने की। रानी वेलु ने सशक्त महिला सेना का गठन किया और महिलाओं को युद्ध की ट्रेनिंग दी।

इतिहास का यह एक दिलचस्प किस्सा है कि कैसे अंग्रेज़ों से रानी वेलु की लड़ाई लगभग 7 सालों तक चली। और उन्होंने हार नहीं मानी, 1780 में रानी वेलु के नेतृत्व में अंग्रेजों से भयंकर युद्ध हुआ। तभी रानी वेलु को ख़बर लगी कि अंग्रेज़ी सेना युद्ध के लिए गोला-बारुद का सहारा लेने वाली है। रानी वेलु ने अपने जासूसों से यह पता करवाया, कि अंग्रेजों ने गोला-बारूद कहां रखा है। अंग्रेजों के गोला-बारूदों और अंग्रेजी हथियारों की जानकारी होने पर रानी वेलु के सामने बड़ी समस्या थी, क्योंकि वे पारंपरिक हथियारों से युद्ध लड़ रहे थे। वे किसी भी कीमत में लंबे समय से चल रहे इस संघर्ष को हारना नहीं चाहती थीं। उन्होंने अंग्रेजों की रणनीति को असफल करने के लिए कुइली नाम की महिला सेना की मदद ली। दरअसल कुइली एक महान सैनिक थी और वे रानी वेलु की वफादार होने के साथ ही सच्ची देशभक्त भी थी। कुइली ने ख़ुद पर घी डाला और आग लगाकर अंग्रेज़ों के गोला-बारूद और हथियार घर में कूद पड़ीं। इस तरह कमांडर कुइली ने दुनिया के पहले आत्मघाती हमले को अंजाम दिया। और रानी वेलु नचियार के नेतृत्व में अंग्रेजों की हार हुई।

इसके बाद रानी वेलु ने शिवगंगा को वापस हासिल किया, उन्होंने अपने कुशल नेतृत्व से 1789 ई. तक शिवगंगा पर शासन किया। 1796 में रानी वेलु का निधन हो गया। इतिहास में अमर रानी वेलु नचियार एक सच्ची देशभक्त तो थी ही, साथ ही उन्होंने अपने कौशल के दम पर अंग्रेजी सेना को हराया भी। यही वजह है कि उनके जीवनकाल तक किसी ने शिवगंगा पर दोबारा आक्रमण नहीं किया। उनके 7 सालों का संघर्ष उनके साहस और दृढ़निश्चय के परिचायक हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और देशप्रेम की मिसाल इतिहास के सुनहरे अक्षरों मे दर्ज है। भारत सरकार ने 2008 में रानी के सम्मान में डाक टिकट जारी किया।

Apr 07, 202205:04
Environment protection initiative: प्रदूषण को रोकने लक्ष्यद्वीप कर रहा है अनूठी पहल, हर बुधवार होगा Bicycle Day!

Environment protection initiative: प्रदूषण को रोकने लक्ष्यद्वीप कर रहा है अनूठी पहल, हर बुधवार होगा Bicycle Day!

भारत का छोटा सा केंद्र शासित राज्य लक्ष्यद्वीप एक अनूठे पहल की ओर बढ़ चुका है। लक्ष्यद्वीप अब दुनिया को पर्यावरण प्रदूषण रोकने का संदेश देगा। दरअसल लक्ष्यद्वीप प्रशासन ने यह फैसला लिया है कि लक्ष्यद्वीप में हर बुधवार Bicycle Day डे होगा। और इसके लिए लोगों को सरकारी कर्मचारी प्रेरित करेंगे। राज्य में 6 अप्रैल से यह नियम लागू हो चुका है।  


प्रशासन की तरफ से आदेश जारी

जहां एक तरफ सायकल स्टेटस सिंबल बन गया है वहीं दूसरी तरफ सरकार के इस प्रयास से सायकल से जुड़े फायदे लोगों की जिंदगी में नज़र आएंगे। वायु प्रदूषण में कमी और हेल्थ से जुड़ी परेशानियां भी कम होंगी। इसके लिए लक्षद्वीप प्रशासन ने आदेश जारी किया है, जिसके मुताबिक, 6 अप्रैल से हर बुधवार को राज्य में साइकिल डे मनाया जाएगा। इस आदेश कहा गया है, कि- इस दिन सारे सरकारी कर्मचारी अपने दफ्तर साइकिल से आएंगे।

13वें लक्षद्वीप प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की 28 जनवरी 2022 को हुई एक मीटिंग में कुछ सुझाव दिए गए थे, जिसके आधार पर प्रशासन ने यह निर्णय लिया है। राज्य के सभी सरकारी कर्मचारी केवल विकलांग और बीमार को छोड़कर अपने कार्यालय जाने के लिए बुधवार को मोटर वाहनों का प्रयोग नहीं करें।

दुनिया भर में तेजी से खराब होती वायु गुणवत्ता की चिंता को कम किया जा सकता है। अगर संभव स्थितियों में इस तरह के निर्णय लोग खुद ही लेने लगें। हाल ही में यूएन एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट जारी की थी जिसमें दुनिया भर के देशों की एयर क्वालिटी की रैंकिंग की गई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर के प्रदूषित शहरों में भारत के सबसे ज्यादा शहर थे। जो आने वाले समय में समस्या का सबब बनेंगे। ऐसे में लक्ष्यद्वीप ने जो फैसला लिया है वह पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए बढ़ाया गया एक कदम साबित होगा जो भारत को और राज्यों और दुनिया को प्रेरित करेगी।

Apr 07, 202201:44
Water Conservation: किसान की ज़िद से खेतों को मिल रहा है सिंचाई का पानी, अपने ही खेत में बनाया करोड़ लीटर पानी वाला विशाल कुआं!

Water Conservation: किसान की ज़िद से खेतों को मिल रहा है सिंचाई का पानी, अपने ही खेत में बनाया करोड़ लीटर पानी वाला विशाल कुआं!

एक प्रसिद्ध कहावत है “जहां चाह है, वहां राह है” और इस बात को सही साबित किया है बीड जिले के पाडलिशिंगी गांव के एक किसान ने। जिन्होंने पानी की समस्या को दूर करने के लिए किसी की सहायता का इंतजार नहीं किया। उन्होंने पानी के बेहतर मैनेजमेंट को समझा और अपने ही खेत में सिंचाई के लिए एक विशाल कुएं का निर्माण कर डाला।

बीड जिले में रहने वाले मारुति बजगुड़े किसानी करते हैं। उनके पास गांव में 12.5 एकड़ जमीन है। जिसमें सिंचाई के लिए उन्हें गर्मियों में काफी परेशानी होती थी। उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए अपने ही खेत में एक विशाल कुआं बनवाया जिसका डाइमीटर 202 फीट है। ये कुआं 41 फीट गहरा है और इसमें 10 करोड़ लीटर पानी है। आज मारुति खुश होते हुए कहते हैं- कि ”अगर अगले दो-तीन साल सूखा रहता है तो भी उनकी ज़मीन को तीन साल तक पर्याप्त पानी मिलेगा।”

मारुति बजगुड़े ने एक वेबसाइट में दिए इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने कुएं से निकले मिट्टी (लाल मिट्टी) और काले पत्थर को सड़क बनाने के लिए दे दिया। और बचे हुए मिट्टी का निर्माण बेसमेंट के निर्माण में लगा दिया। बजगुड़े कहते हैं कि कुआं के निर्माण में उन्होंने अपनी पूरी जमा पूंजी लगा दी। और आज मेरा ये एक एकड़ का कुआं बीड जिले की पहचान बन चुका है।

मारुति बाजगुड़े कहते हैं कि- “अब उनके पास पानी है तो वह पानी वाले फलों की खेती करेंगे। फिलहाल उन्होंने आठ एकड़ की जमीन पर मौसंबी लगा चुका हूं और अब मेरे खेत को पूरे साल पानी मिल सकेगा।”

बाजगुड़े ये भी कहते हैं कुआं बनवाना काफी खर्चीला है। ऐसे में अगर कुछ किसान आपस में मिलकर इस तरह से पानी के मैनेजमेंट को समझें और इंप्लीमेंट करें तो किसानों की पानी की समस्या जड़ से खत्म हो सकती है।

ये मारुति बाजगुड़े की इच्छाशक्ति और साहस का परिणाम है कि उनके पास आज पर्याप्त पानी है। सरकार और स्थानीय किसान अगर इस तरह की तकनीक पर काम करें तो वाकई पानी की समस्या दूर हो सकती है।

Apr 06, 202202:17
RAKESH GANGWAL INDIGO: IIT KANPUR को पूर्व छात्र ने दिए 100 करोड़ रुपए, आईआईटीयन से मशहूर उद्यमी बनने का दिलचस्प सफर!

RAKESH GANGWAL INDIGO: IIT KANPUR को पूर्व छात्र ने दिए 100 करोड़ रुपए, आईआईटीयन से मशहूर उद्यमी बनने का दिलचस्प सफर!

HIGHLIGHTS:

· RAKESH GANGWAL ने कानपुर आईआईटी को दान किए 100 करोड़ रुपए

· पूर्व आईआईटीयन हैं RAKESH GANGWAL

· दान के पैसों से आईआईटी कानपुर में बनेगा school of medical research and technology

RAKESH GANGWAL: भारतीय संस्कृति में गुरू दक्षिणा की परंपरा सदियों प्राचीन है। और यह परंपरा आज भी चली आ रही है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण हाल ही में भारतीय-अमेरिकी उद्यमी (Businessman) RAKESH GANGWAL ने पेश किया है। आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र रह चुके RAKESH GANGWAL ने संस्थान को 100 करोड़ रुपए दान के रूप में दिए हैं। जिसके लिए आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) की तरफ से कहा गया है कि यह अब तक सबसे बड़ा व्यक्तिगत दान है। जिसका उपयोग आईआईटी कैंपस में बनने वाले स्कूल ऑफ मेडिकल रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी (school of medical research and technology) के निर्माण में किया जाएगा।

RAKESH GANGWAL कौन हैं?

RAKESH GANGWAL आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र तो हैं ही साथ ही वे एक मशहूर भारतीय-अमेरिकी उद्यमी हैं। उनकी पहचान किफायती उड़ान सेवा उपलब्ध कराने वाली कंपनी इंडिगो एयरलाइंस के को-फाउंडर के तौर पर है।

RAKESH GANGWAL की शिक्षा

राकेश गंगवाल का जन्म वर्ष 1953 में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा डॉन बॉस्को (पार्क सर्कस) स्कूल, कोलकाता से पूरी की है। बाद में उन्होंने 1975 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने अमेरिका के प्रसिद्ध पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के व्हार्टन स्कूल अपनी एमबीए पूरी की।

एयरलाइंस के क्षेत्र में सफर

सितंबर 1980 में आईआईटियन गंगवाल ने एयरलाइंस इंडस्ट्री के क्षेत्र में अपना सफर शुरू किया। वे तब बूज एलन और हैमिल्टन इंक के साथ एक सहयोगी थे। बाद में वे यूनाइटेड एयरलाइंस में शामिल हो गए, जहां उन्होंने मैनेजर, स्ट्रेटेजिक प्लानर के रूप में अपनी सेवाएं दी। गंगवाल यूनाइटेड एयरलाइंस के सीईओ भी बने। साल 1998 से 2001 में यूएस एयरवेज ग्रुप में सेवाएं दीं।, गंगवाल ने 2003 से 2007 तक वर्ल्डस्पैन टेक्नोलॉजीज के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद भी संभाला था।

2006 राकेश गंगवाल ने अपने एक अरबपति कारोबारी मित्र राहुल भाटिया के साथ मिलकर एक विमान के साथ इंडिगो एयरलाइंस की स्थापना की।

Apr 05, 202201:50
मातंगिनी हाजरा- ‘बूढ़ी गांधी’ जिन्होंने मृत्यु को स्वीकारा पर तिरंगे को झुकने नहीं दिया!

मातंगिनी हाजरा- ‘बूढ़ी गांधी’ जिन्होंने मृत्यु को स्वीकारा पर तिरंगे को झुकने नहीं दिया!

बंगाल की ‘ओल्ड लेडी’ के नाम से मशहूर मातंगिनी हाजरा के बार में शायद ही कम लोग जानते होंगे। मातंगिनी हाजरा आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाली सेनानी थी, जिन्होंने गांधीजी के नक्शे कदम पर चलकर देश की आजादी में अपना अमूल्य योगदान दिया। ‘मातंगिनी हाजरा’ का जन्म 19 अक्टूबर 1870 में पूर्वी बंगाल में हुआ था जो वर्तमान के बांग्लादेश है। बेहद गरीब परिवार में जन्मीं मातंगिनी स्कूल तक नहीं जा पाईं। 12 साल की छोटी सी उम्र में 62 वर्षीय त्रिलोचन हाजरा से उनका विवाह कर दिया गया। शादी के 6 वर्ष बाद ही उनके पति की मृत्यु हो गई जिसके बाद मातंगिनी अपने मायके वापस आ गईं।

गरीबी, अशिक्षा और विधवा होने का सामाजिक तिरस्कार झेल रहीं मातंगिनी बदलाव चाहती थीं। बदलाव सशक्त और आत्मनिर्भर होने की। यही वजह थी कि मातंगिनी भारत के आजादी की लड़ाई में शामिल हो गईं।

जैसे-जैसे गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन ने तेजी पकड़ी वैसे-वैसे बंगाल में भी आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों की सेना खड़ी होने लगी थी। और ऐसी ही एक सेना का नेतृत्व किया बंगाल की ‘ओल्ड लेडी’ ‘मातंगिनी हाजरा’ ने।

साल 1932 में जब गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। तब मातंगिनी गांधी की विचारधारा से काफी प्रभावित हुईं और वह भी इस आंदोलन का हिस्स बन गईं। मातंगिनी को नमक कानून तोड़ने की सजा मिली जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन मातंगिनी डरी नहीं उन्हें समझ में आ गया था, कि-अगर अंग्रेजों की गुलामी को खत्म करना है तो उनका डटकर मुकाबला करना होगा। मातंगिनी हाजरा, गांधी के रास्ते पर चलकर गांधी के कई आंदोलनों में भाग लेती और गिरफ्तार होती। इस बीच उन्हें अंग्रेजों ने खूब यातनाएं भी दी।

मातंगिनी ने खादी कातने और पहनने से लेकर अहिंसा तक महात्मा गांधी का अनुसरण किया। और यहीं वजह थी कि उन्हें इतिहास में ‘बूढ़ी गांधी’ के नाम से जाना गया। उन्होंने पूर्वी बंगाल में आजादी के लिए जो आंदोलन चलाया उनमें अहिंसा और बापू के मार्ग पर चलकर आजादी मांगी जाती थी। साल 1933 में तामलुक के कृष्णगंज बाजार में मातंगिनी एक जुलूस में शामिल हुईं और शांतिपूर्वक विरोध किया लेकिन अंग्रेजों ने उन पर लाठी बरसाई जिससे मातंगिनी हाजरा बुरी तरह घायल हो गईं। लेकिन उनकी प्रतिज्ञा थी, कि चाहे प्राण पर क्यों न बन आए मैं स्वराज की मांग नहीं छोड़ूंगी।

मातंगिनी एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी तो थी हीं। साथ ही उन्हें तामलूक क्षेत्र में माता का दर्जा भी दिया गया हैं क्योंकि उन्होंने तामलुक क्षेत्र में अपनी जान की परवाह किए बगैर लोगों की सेवा की। दरअसल साल 1935 में तामलुक क्षेत्र में भीषण बाढ़ आई. जिसके बाद वहां बुरी तरह हैजा और चेचक फैल गया। मातंगिनी हाजरा अपनी जान की परवाह किए बगैर राहत कार्य में जुट गईं। और स्थानीय लोगों की हर संभव मदद की फिर चाहे उनके लिए राहत कार्य करना हो या दिलाना हो या जरूरी उपचार।

1942 में गांधीजी का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ चरम पर था। इस आंदोलन के बाद ही भारत को आजादी मिली। और इसी आंदोलन में मातंगिनी ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। मातंगिनी हाजरा 29 सितंबर 1942 को एक विरोध रैली में शामिल हुईं थीं। जब रैली अंग्रेजी सरकार के आवासीय बंगले के सामने पहुंची तब, अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चला दी। मातंगिनी को एक गोली हाथ पर और एक गोली सिर पर लगी। मातंगिनी ने वंदे मातरम कहते हुए अपनी आखिरी सांस ली। इतिहासकारों ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है, कि- जब मातंगिनी को पहली गोली लगी तो उन्होंने तिरंगे को संभाले रखा और दूसरे गोली लगते ही उन्होंने तिरंगा दूसरे स्वतंत्रता सेनानी के हाथों में दी पर तिरंगा को झुकने नहीं दिया। आजादी के बाद उनके नाम पर कई स्कूल और सड़क बनाए गए। वर्ष 2002 में, भारत छोड़ो आंदोलन और तामलुक राष्ट्रीय सरकार के गठन की स्मृति की एक श्रृंखला के रूप में भारतीय डाक विभाग द्वारा मातंगिनी हाजरा का पांच रुपए का डाक टिकट जारी किया गया।

Mar 17, 202205:04
Biography of Albert Einstein: Birth, Childhood, Education, Scientific Career, Inventions, Awards and Honors, Legacy, and More

Biography of Albert Einstein: Birth, Childhood, Education, Scientific Career, Inventions, Awards and Honors, Legacy, and More

HIGHLIGHTS:

· Einstein was born in Ulm, Wurttemberg, Germany, on March 14, 1879

· At the age of 16, Albert Einstein published his first paper, which was inspired by his compass after failing to find work

· Albert Einstein started to teach students mathematics and physics , then moved to obtain his Ph.D.

Biography of Albert Einstein: Albert Einstein was born in Ulm, Wurttemberg, Germany, on March 14, 1879. He created the special and general theories of relativity as a physicist. Albert Einstein was a theoretical physicist best known for establishing the theory of relativity and photoelectric phenomena. For his work on the photoelectric effect, he was awarded the Nobel Prize in Physics in 1921.

Early Life, Education, Marriage, Children, and Teaching Career of Albert Einstein

He was born in Ulm, Württemberg, Germany, on March 14, 1879, to a secular, middle-class Jewish family. Hermann Einstein was his father, while Pauline Koch was his mother. His father was a featherbed dealer who eventually went on to run a moderately successful electrochemical manufacturer. Maria Einstein was Albert Einstein's only sibling. His family relocated to Munich, where he attended the Luitpold Gymnasium. His parents afterwards shifted to Italy, where he continued his schooling in the Swiss town of Arau. In 1896, he enrolled at the Swiss Federal Polytechnic School in Zurich. He received his training as a physics and maths teacher there. Albert received his diploma and became a Swiss citizen in 1901. He didn't receive the teaching job at the time, but he did gain a job as a technical assistant at the Swiss Patent Office. In 1905, he earned his doctorate.

Two wonders that deeply affected him

Two wonders strongly affected Albert Einstein in his early years, he wrote . His first experience was with the compass. He was five years old at the time. He was perplexed that the needle may be deflected by unseen forces. The second occurred when, he was of 12, he discovered a geometry book and dubbed it as  "sacred little geometry book."

When he had spare time, he worked in the Swiss Patent Office, where he produced much of his incredible work. In 1908, he was appointed Privatdozent in Berne. In 1909, he was appointed Professor Extraordinary at Zurich, and in 1911, he was appointed Professor of Theoretical Physics at Prague. He returned to Zurich the next year to take up a similar position.

In 1914, he was also named Director of the Kaiser Wilhelm Physical Institute and Professor of Physics at the University of Berlin. He became a German citizen in 1914 and lived in Berlin until 1933. He became a citizen of the United States in 1940 and left his post in 1945.

In 1903, Albert Einstein married Mileva Maric. The couple has two sons and a daughter. They divorced in 1919. Albert married his cousin Elsa Lowenthal in the following year, and she died in 1936.

On the occasion of Albert Einstein's birthday, here are some fascinating facts about his life:

1. Albert Einstein was born in Germany, but he did not spend much time there. He spent time in Italy, Switzerland, and the Czech Republic. Albert Einstein never returned to Germany after relocating to the United States.

2. After his father gave him a compass as a child, Albert Einstein became fascinated with physics.

3. At the age of 16, Albert Einstein published his first paper, which was inspired by his compass.

4. Albert Einstein struggled with language and other courses, so he dropped out of school when he was 15 years old. He did, however, excel in Mathematics, Physics, and Philosophy.

5. Albert Einstein first started to teach students mathematics and physics , then moved to obtain his Ph.D. after failing to find work.

Mar 14, 202204:27
ऊदा देवी- अंग्रेजों से लोहा लेने वाली महिला सैनिक की कहानी!

ऊदा देवी- अंग्रेजों से लोहा लेने वाली महिला सैनिक की कहानी!

1857 की क्रांति को कोई भी भारतीय भूल नहीं सकता, अंग्रेजों के खिलाफ भारत की इस पहली लड़ाई ने अंग्रेजी सत्ता की नींव को हिला कर रख दिया। इस युद्ध में सभी ने देश की आजादी के लिए बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। फिर चाहे वो पुरूष हो या महिलाएं। देश के लिए लड़ी गई इस लड़ाई में अमरत्व को पाने वाली भारतीय महिलाओं में अक्सर रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, बेगम हजरत महल और अवंती बाई लोदी जैसी वीरांगनाओं का नाम आता है। लेकिन 1857 की इस क्रांति में शहीद हुई योद्धा,ऊदा देवी का नाम ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं। ऊदा देवी भारतीय इतिहास की वह काबिल निशानेबाज योद्धा हैं जिन्होंने, उत्तरप्रदेश के लखनऊ में हुई सबसे भीषड़ लड़ाई में न केवल भाग लिया बल्कि अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।

ऊदा देवी के पति मक्का पासी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की सेना में सैनिक थे। साल 1857 में जब अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह हुआ तो लखनऊ के पास चिनहट नाम की जगह में नवाब की फौज़ और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में ऊदा देवी के पति मक्का पासी मारे गए। पति की मौत के बाद ऊदा देवी ने लखनऊ की सेना की तरफ से युद्ध में शामिल होना स्वीकार किया। और 1857 की क्रांति में कूद पड़ीं।

इतिहासकार बताते हैं कि ऊदा देवी साहसी और सच्ची देशप्रेमी थीं। उन्होंने अपने पति से प्रेरणा लेकर ही उनके जीवनकाल में युद्ध कला और बंदूक चलाना सीख लिया था। और वह वाजिद अली शाह की बेगम हज़रत महल की सुरक्षा में तैनात हो गईं थीं। उनकी सैन्य गतिविधियों में रूचि को देखते हुए उन्हें सैन्य सुरक्षा दस्ते का सदस्य भी बनाया गया।

16 नवंबर 1857 वह समय है, जब ऊदा देवी इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गईं। दरअसल इसी समय ऊदा देवी भारतीय विद्रोहियों के साथ लखनऊ के सिंकदरा बाग में डेरा डाल लिया था। वे एक बड़े से पीपल के पेड़ पर चढ़ गईं और अंग्रेजी सेना को निशाना बनाया। उनके निशाने ने एक के बाद एक 36 अंग्रेजी सैनिकों को ढेर कर दिया। अंग्रेजों को बहुत देर तक यह समझ में ही नहीं आया कि, पेड़ पर कौन चढ़ा है। बाद में अंग्रेजी सेना के अफसर कोलिन कैम्पबेल की अगुवाई में ब्रिटिश सैनिकों ने पीपल के पेड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं। जिसके बाद पीपल के पेड़ से एक लाश गिरी। गोलियों से छलनी ऊदा देवी जब जमीन पर गिरीं तो अंग्रेज अफसर कैम्पबेल हैरान रह गए। कि गोली चलाने वाला विद्रोही एक महिला थी। ऊदा देवी की बहादुरी देखकर कैंपवेल ने अपने सैनिकों को आदेश देकर उनके साथ शहीद ऊदा देवी के मूर्छित शरीर को सैल्यूट किया।

फोर्ब्स-मिशेल, ने ‘रेमिनिसेंसेज़ ऑफ़ द ग्रेट म्यूटिनी’ में ऊदा देवी के बारे में यह लिखा है, कि-‘‘ऊदा पुराने पैटर्न की दो भारी कैवलरी पिस्तौल से लैस थीं, इनमें से एक आखिरी तक उनकी बेल्ट में ही थी, जिसमें गोलियां भरी थीं। हमले से पहले पेड़ पर सावधानी से बनाए गये अपने मचान पर से उन्होंने आधा दर्जन से ज़्यादा विरोधियों को मार गिराया.’’

ऊदा देवी अंतिम सांस तक लड़ती रहीं। उन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की तक आहूती दे दी। उनकी वीरता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि क्रूर अंग्रेजी सेना तक ने उनकी शहादत को सलाम किया। उनके वीरता की यह कहानी लोककथाओं और जनस्मृतियों में आज भी ज़िंदा हैं।

Mar 02, 202204:20
भारतीय सिनेमा की नींव रखने वाली सरस्वती बाई, जिनके दम पर बनी भारत की पहली फिल्म !

भारतीय सिनेमा की नींव रखने वाली सरस्वती बाई, जिनके दम पर बनी भारत की पहली फिल्म !

See positive present’s अनसुनी गाथा...उन UnsungHeroes की कहानियां जिन्होंने नए भारत की इबारत लिखी है। ऐसी कहानियां जो प्रेरणा की मिसाल है। आज की कहानी है सरस्वती बाई की, जिनकी मेहनत और लगन के बदौलत हमें मिल पाई भारत की पहली फिल्म "राजा हरिशचंद्र"

Feb 16, 202205:04
मेरी आवाज ही पहचान है...स्वर कोकिला लता मंगेशकर

मेरी आवाज ही पहचान है...स्वर कोकिला लता मंगेशकर

नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा...मेरी आवाज़ ही पहचान है, ग़र याद रहे।ये गीत हर संगीत प्रेमी को आज भावुक कर रहा है।

Feb 07, 202202:41
छत्तीसगढ़ में ONE NATION, ONE RATION कार्ड योजना लागू, राज्य के पात्र उपभोक्ताओं को देशभर में मिलेगा लाभ!

छत्तीसगढ़ में ONE NATION, ONE RATION कार्ड योजना लागू, राज्य के पात्र उपभोक्ताओं को देशभर में मिलेगा लाभ!

वन नेशन वन राशन कार्ड योजना अब छत्तीसगढ़ राज्य में भी लागू हो गई है। इससे खाद्य कानून के तहत राज्य के सभी पात्र उपभोक्ता अपने खाद्यान्न का कोटा देशभर में किसी भी राशन की दुकान राशन मिल सकेगा। दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार के खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के द्वारा हाल ही में वन नशन वन राशन कार्ड (ONORC) योजना के कार्यान्वयन की दिशा में राज्यों एवं संघ प्रदेशों की प्रगति की समीक्षा की गई थी।

Feb 04, 202201:49
प्रेम बिहारी नारायण Calligrapher of Indian Constitution

प्रेम बिहारी नारायण Calligrapher of Indian Constitution

जब भी भारतीय संविधान की बात आती है, डॉ बी आर अंबेडकर का नाम ज़हन में आता है। उनके अलावा पं जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद भी भारतीय संविधान निर्माण समिति के मुख्य सदस्य थे। लेकिन भारतीय संविधान से जुड़े एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व प्रेम बिहारी नारायण को कम ही लोग जानते हैं। प्रेम बिहारी नारायण की कहानी संविधान की पांडुलिपि से जुड़ी है। संविधान की पांडुलिपि यानि कि वह मूल किताब जिसे हाथ से लिखा गया है।

Jan 24, 202204:15
26 January 2022: भारत की हवाई ताकत के प्रदर्शन के साथ ही पहली बार बतौर गेस्ट शामिल होंगे सफाई कर्मचारी!

26 January 2022: भारत की हवाई ताकत के प्रदर्शन के साथ ही पहली बार बतौर गेस्ट शामिल होंगे सफाई कर्मचारी!

26 January 2022 को भारत अपना 73वां गणतंत्र दिवस मनाएगा। भारत में हर साल 26 जनवरी को देश की राजधानी दिल्ली के राजपथ पर परेड आयोजित की जाती है जो काफी आकर्षक होती है। लेकिन 2022 का गणतंत्र दिवस कई मामलों में खास होगी।

Jan 19, 202202:11
16TH JANUARY NATIONAL START-UP DAY: सपनों को लोकल नहीं ग्लोबल बनाएं- PM MODI

16TH JANUARY NATIONAL START-UP DAY: सपनों को लोकल नहीं ग्लोबल बनाएं- PM MODI

अब 16 जनवरी को भारत में National start-up day के रूप में मनाया जाएगा। इस बात की जानकारी पीएम मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दी। देशवासियों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी कहा कि- ”मैं देश के सभी स्टार्ट-अप्स को, सभी इनोवेटिव युवाओं को बधाई देता हूं, जो स्टार्ट-अप्स की दुनिया में भारत का झंडा बुलंद ऊंचा कर रहे हैं।”

Jan 17, 202202:45
आत्मसम्मान के बिना जीने से बेहतर है गरिमा के साथ मरना - Rani Durgawati

आत्मसम्मान के बिना जीने से बेहतर है गरिमा के साथ मरना - Rani Durgawati

भारत की पवित्र भूमि पर बहुत से वीर योद्धाओं का जनम लिया है परन्तु यहाँ के वीरांगनाओं की कहानियां भी किसी से कम नहीं। गढ़ मंडला से लेकर महाकोशल तक राज करने वाली रानी दुर्गावती को जल, जंगल और पहाड़ों की रानी के रूप में भी जाना जाता था। इसी बात से परेशां मुग़ल राजा अकबर ने माध्यम भारत में अपनी पैठ बनाने के लिए उसके चुनौती दी की वो मुग़ल सल्तन को अपना ले। रानी दुर्गावती को चुनौती मंजूर थी परन्तु गुलामी नहीं। रानी युद्ध के लिए तैयार हो गई।

Jan 17, 202204:03
Rani Kamplapati - The Last Gond Queen

Rani Kamplapati - The Last Gond Queen

There are many unseen and unsolved mysteries in history, which have the potential to leave a deep impression in the lives of human beings. There is one such influential historical story whose impact can be seen even today. This is the story of a unique queen, who sacrificed her life to protect the dignity of women and the kingdom. This story of 18th century is very interesting, it is the story of the last Gond queen of Ginnaurgarh 'Rani Kamalapati'.

Dec 10, 202104:59
Story of Navratri

Story of Navratri

Have you ever thought about why Navratri celebrated? Here's all of your answers...

Oct 18, 202105:32