गुमशुदा चिट्ठियां Gumshuda Chitthiyan
By विकास
गुमशुदा चिट्ठियां Gumshuda ChitthiyanSep 24, 2020
बातें, दिल से, दिल की Baaten, Dil se, Dil Ki
लंबा समय हुआ। बात नहीं हुई। इधर, चिट्ठी भी नहीं लिख पाया तुम्हें। कुछ जीवन की उलझनें रहीं और कुछ दफ़्तरी कामों की। बात नहीं हुई। तुमने भी नहीं की। ये जानते हुए भी कि तुम्हारी बातें, मेरी उलझनों की कंघी हैं। सब सुलझा देती हैं। लेकिन सब उलझता गया। बात हो जाती तो अच्छा होता। बात करने से ही बात बनती है। लेकिन ज़रा अपने आसपास नज़र घुमाओ। जाओ अपनी फ्रेंड लिस्ट में। और देखो, वहाँ कितने लोग हैं, जिनसे हम बात कर सकते हैं। सच्चाई तो ये है कि दोस्तों की लिस्ट नहीं होती। ये हमारा दुर्भाग्य है कि हम इस बात को समझ नहीं पाते। थोड़ा-सा और सोचो। सोचो कि तुम्हारे आसपास कितने लोग हैं, जिससे बात की जा सकती है। बात करना क्या है? अपने सुख-दुःख को बाँटना ही तो बात करना है। और बाँटना क्या है? सिवाय अपनी अंतरंगता की परिधि में किसी को शामिल करने के सिवा। इसीलिए बात करने के लिए प्रेम और समर्पण से लबरेज एक दिल चाहिए। आत्मीयता चाहिए।
मृत्यु की ओर Towards Demise
शब्दों में नाद का न रहना मृत्यु का सूचक है। संभवतः मैं मृत्यु की ओर अग्रसर हूं। वो मुझमें जान फूँकने की नाकाम-सी कोशिश कर लेती है। मुझे लिखने को उकसाते हुए। वो पूछती है, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकती हूँ। मैं कहता हूँ, संभवतः कुछ नहीं। उसे कौन समझाए कि मुर्दा मन भी भला, कुछ लिख पाया है कभी। कोई किसी के लिए कुछ नहीं कर सकता। जो करना होता है, ख़ुद ही करना होता है। मैं समुद्र के सम्मुख खड़े उसी पेड़ की तरह हो गया हूँ, जिसमें अब सिर्फ़ एक ढांचा मात्र बचा है। ये बारिशें इस पेड़ पर नई कोंपलें लाने में कामयाब न हो पाईं। न जाने कैसे खालीपन से भरा है इस पेड़ की टहनियों के बीच का रिक्त स्थान कि अपनी ही पत्तियों के लिए स्थान नहीं है। वो फूल, वो पत्तियां ही इस वृक्ष का नाद हैं। उनकी अनुपस्थिति में लोग इसे मृत कहते हैं। एक मरा हुआ पेड़। शब्दों में नाद की अनुपस्थिति, आत्मा में मृत्यु की उपस्थिति है। और खलील जिब्रान कह गए हैं, कवि की मौत ही उसका जीवन है।
राहत इंदौरीः महबूब शायर
उस शाम सूरज डूबने के साथ ही उसके लिए हिंदुस्तान का दिल डूबने लगा। हर तरफ़ उसे उसी के अशआरों में ख़िराजे अक़ीदत पेश की जा रही है। लेकिन मन है कि मानता ही नहीं, तुम नहीं हो। तुम हो। यहीं कहीं हो। और मैं जानता हूं कि तुम इसे सुन रहे हो:
ओ मेरे महबूब शायर,
कैसे लिखूं। बहुत मुश्किल है। और तुम कितना पहले लिख गएः
ये हादसा तो एक रोज़ गुज़रने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज़ मरने वाला था
दुनिया पूछ रही है, अब कौन उठाएगा आसमान की तरफ़ हाथ और दमख़म के साथ बेख़ौफ़ होकर कहेगाः
सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े है....
रह जाता कोई अर्थ नहीं
बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता। रह जाती हैं तो बस उस समय की बातें-यादें। अच्छी-बुरी। सुख-दुःख। हम कहते हैं कि दुःख है, इसीलिए सुख का अस्तित्व है। बिना दुःख के सुख की पहचान कहां हो पाती है। ये सब कहने की बातें हैं। क्योंकि जब दुःख का अतिरेक हो जाता है तो सुख का सुख भी नहीं मिल पाता है। हम अक्सर इस अवस्था से गुज़रते हैं कि किसी को कुछ भी कह देते हैं। कहते रहते हैं। बाद में फिर अफ़सोस जताते हैं। ऐसा बार-बार होना निश्चित रूप से अच्छा नहीं होता। इस बारे में रामधारी सिंह दिनकर ने कितनी ही बातों से समझाने का प्रयास किया है। हो सकता है कि बचपन में आपने यह कविता पढ़ी हो, सुनी हो। लेकिन इसे पुनः पुनः सुनना एहसास दिलाता है कि दुख-विषाद में डूबे व्यक्ति का सुख के समंदर में गोते लगाना इतना आसां नहीं होता। मेरे मन को ये दो पंक्तियां विशेष रूप से भाती हैं-
छोटी-छोटी खुशियों के क्षण, निकले जाते हैं रोज़ जहाँ,
फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।
मन कटुवाणी से आहत हो, भीतर तक छलनी हो जाये,
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।
लौटने की जगह
क्योंकि सबसे सुंदर चिट्ठियां प्रेम में ही लिखी गईं
आप जो बातें कह नहीं सकते, चिट्ठी में लिख देते हैं। एक छोटी-सी चिट्ठी बड़ी से बड़ी दूरियां मिटा देती है। एक समय था जब प्रणय निवेदन का सबसे प्रभावी माध्यम ये चिट्ठी ही हुआ करती थी। सदियों पुराना इतिहास है चिट्ठियों का।
सैम्युअल रिचर्डसन के पामेला में और क्या है, सिवाय चिट्ठियों के, जिसे पहले उपन्यास का आख्यान माना गया है। इसमें एक बिटिया की अपने माता-पिता को लिखी चिट्ठियां ही तो हैं। नेहरू की इंदिरा को लिखी चिट्ठियां आज भी पढ़ी जाती हैं। जेन ऑस्टिन के Persuasion के कैप्टन फ्रेडरिक वेंटवर्थ का लव नोट और क्या है? फ्रांज़ कापुस को लिखे रिल्के के पत्र तो लोग खोज-खोजकर पढ़ते हैं। निर्मल वर्मा के लिखे पत्रों में कितना कुछ मिलता है। अमृता और इमरोज़ के ख़तों में क्या है? टीएस इलियट ने क्लाइव बेलन को पोस्टकार्ड क्यों लिखा था? इन सबके पीछे क्या है? सिवाय प्रेम के। और वो पहली चिट्ठी जब कलेजे का टुकड़ा घर से पहली बार बाहर निकला था, दूसरे शहर गया था, पढ़ने। और वहां से लिखी थी उसने पहली चिट्ठी माँ को, पापा को। उसके बड़े भाई ने भेजा था ख़त और लिखा था, किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो लिखना।