Chai Kay Thele Se Prateek Kay Saath
By Prateek Kataria
भैया एक कप चाय देना !!!
चल सेल चाय सुट्टा पीने चलें !!!
चल न यार चाय पर बात बताता हूँ !!!
सर दर्द है यार दो घुट चाय तो पीला दो !!!
चाय के बिना साला प्रेशर ही नहीं बनता !!!
आप आजायें हम रिश्ता चाय पर फाइनल कर लेते हैं !!!
ये सब बातें अपने अक्सर सुनी तो होंगी ना , हम उस देश में रहते हैं जहां जहाँ चाय के ठेले पर चर्चा करते करते हम लोगो ने प्रधानमन्त्री बदल दिए | चाय वो बाला है जिसने कॉलेज के फाइनल ईयर में ज़िन्दगी भर के दोस्त मिला दिए दिए .
चाय वो है जिसपर आज भी आधा हिंदुस्तान अपनी थकान मिटा रहा है .
तो दोस्तों मैं प्रतीक ले कर आ रहा हूँ ऐसे ही किसी चाय के ठेले के ीर्ध गिर्द लिखी हुई कविता
चल सेल चाय सुट्टा पीने चलें !!!
चल न यार चाय पर बात बताता हूँ !!!
सर दर्द है यार दो घुट चाय तो पीला दो !!!
चाय के बिना साला प्रेशर ही नहीं बनता !!!
आप आजायें हम रिश्ता चाय पर फाइनल कर लेते हैं !!!
ये सब बातें अपने अक्सर सुनी तो होंगी ना , हम उस देश में रहते हैं जहां जहाँ चाय के ठेले पर चर्चा करते करते हम लोगो ने प्रधानमन्त्री बदल दिए | चाय वो बाला है जिसने कॉलेज के फाइनल ईयर में ज़िन्दगी भर के दोस्त मिला दिए दिए .
चाय वो है जिसपर आज भी आधा हिंदुस्तान अपनी थकान मिटा रहा है .
तो दोस्तों मैं प्रतीक ले कर आ रहा हूँ ऐसे ही किसी चाय के ठेले के ीर्ध गिर्द लिखी हुई कविता
Chai Kay Thele Se Prateek Kay SaathSep 11, 2020
00:00
08:58
MAIN INDIA GATE HOON : A TRIBUTE TO COVID WARRIORS
A REPUBLIC DAY SPECIAL
Jan 26, 202104:60
Special Episode : Mera College wala Dost
A short story about my friend
Oct 26, 202003:13
Episode 3: Tilu aur Nana Nani .
दोस्तों सबसे पहले तो मैं कान पकड़कर सॉरी बोलना चाहूंगा , तीसरी कहानी को देरी से आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिये।
वो क्या है ना कोरोना काल में मेरे माँ बाबा ने मेरा घर से ज़्यादा BAHAR निकलना वर्जित किया हुआ था , तो मेरा अपने चहेते चाय के ठेले पे आना मुमकिन नहीं हो प् रहा हां था , आज बड़ी मुश्किल से मीटिंग का बहाना देकर घर से बाहर निकला हूँ।।
तो अब जब इतना कुछ किया है तो सोचा आपको आज एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो मेरे दिल के बहुत HE करीब है , कहीं न कहीं इस कहानी के कुछ अंश आपके और मेरे बचपन से जुड़े हैं।
तो आज की कहानी है : टीलू और नाना नानी
ये कहानी है सं 1995 में , दिल्ली में रहने वाले टीलू की |
ये तब की बात है जब टीलू 7 साल का गोल मटोल बालक था , दुनिया दारी से अनजान और हर लालच से दूर बस अपनी ही धुन में सवार रहता |
टीलू महाशय अपनी माँ - बाबा की आंख का तारा तो था ही लेकिन जब भी शाम को खेलने निकलते थे मानो पूरे मोहल्ले की नज़रे इस गोल मटोल लड्डू जैसे टीलू को देख कर फूली न समाती थी | उसके चेहरे की चमक और मासूमियत देख कर सब के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आजाती।
टीलू महाशय के दो ही शौक थे एक चुपके से माँ की हाथ की बनी हुई सब्ज़ी खा जाना और दूसरा रोज़ शाम को आइस क्रीम वाले भाई की रेडी से PAANCH RUPE VALI ऑरेंज बार खाना।
और पता है क्या महाशय एक तीसरा शौक भी था - हर दुशेहरे की छुट्टिओं में अपनी नानी क घर पानीपत जाना।
मई 1995 की दशहरे की छुट्टिओं की बात है जैसे ही स्कूल से छुट्टियों का सर्कुलर घर आया तो टीलू अपनी माँ से कहने लगा "मम्मी मम्मी नानी के घर चलो न" , माँ भी टीलू की प्यार भरी ज़िद के आगे कुछ कह न पाई और आने वाले १० दिन की छुट्टिआं बिताने टीलू महाशय अपनी माँ के संग ननिहाल चले आए |
टीलू के लिए उसकी नानी का घर अपने घर से कम न था , उसके नाना नानी उसके दूसरे माँ बाबा की तरह थे |
टीलू ना सिर्फ अपने माँ बाबा का बल्कि अपने नाना नानी की भी आँखों का तारा था .
जब भी टीलू नानी के घर जाता था नानी पहले से ही उसके चहिते पकवान तैयार रखती थी आखिर कार नानी को भी पता था उनके लाडले नाती के पेट में पल दो पल चूहे जो उछाल कूद मचाते हैं।
दिल्ली से पानीपत हरयाण रोडवेज का झटके BHARA सफर पूरा कर जब टीलू नानी के घर पहुंचा तो सबसे पहले वो दौड़ के अपने नानाजी से लिपट गया और कहा " डैडी देखो मैं आगया अब जल्दी से मुझे 5 रुपए खर्ची दो " टीलू की मासूमियत भरी ज़िद देख कर नानाजी खुदको रोक न पाए और उसको प्यार से गले लगा के कहा " अरे टीलू ५ रुप्पे क्या तू 10 रुपए ले मेरे लाल "
ये सुनकर टीलू की ऑंखें चमक उठी और उसने अपने नानाजी को और ज़ोर से गले लगा लिया |
अभी बस नानाजी ने टीलू को गोद से उतारा ही था की पीछे से एकदम से कोई आया और उससे कहा " मेरा राजा बेटा आगया " और ये सुनते ही टीलू खिलखिला के चिल्लाया "नानी............... " और भाग कर अपनी चहेति नानी से जा लिपटा |
टीलू मनो जब भी नानी के घर जाता पूरा घर खुशिओं से किलकारियों से खिल उठता था और क्यों भी न हो आखिरकार सबका लाडला जो लौट आया था |
अब क्या था रोज़ सुबह टीलू महाशय को राजा की तरह उसके नानाजी उठाते , और उठते ही हमारे लाडले की पहली ख्वाहिश होती थी नानी के हाथ के परांठे |
टीलू मुँह से तो बाद में बोलता , उससे पहले ही नानी उसके चहिते दाल के परांठे सफ़ेद मक्ख़न से लाद कर अपने हाथो से उसे खिलाती |
पराँठे खाते ही महाशय जी अपने नानाजी के संग गौ शाला जाते गौओं को आटे का गोला खिलाते और डोलू भर के गाए का दूध घर ले आते , घर आते ही नानी अपने लाडले को नमकीन लस्सी का गिलास पिलाती और फिर टीलू महाशय को प्रतिदिन उसके मामा ठन्डे ठन्डे पानी से नहलाते |
माना टीलू हमारा खाने का शौक़ीन था लेकिन हर दोपहर टीलू अपनी नानी से रामायण सुने बिना उनकी नाक में दम कर देता , और जैसे ही कहानी ख़तम होती हमारे छोटू राम के पेट में मानो चूहे फिर से दौड़ लगाते और ये देख नानी तुरंत अपने लाडले के लिए उसकी चहीती पनीर की भुर्जी और देसी घी की बानी चुरी ले आती , और बस उसको प्यार और उदार भरी आँखों से देख मंद मंद मुस्कुराती .
जैसे हे शाम होती और नानाजी घर वापस आते सबसे पहले उसको बाजार में आलू की टिक्की खिला कर लाते और साथ ही में रामलीला दिखने मेले में भी लेकर जाते।
टीलू और नाना नानी का प्यार एक दम निर्मल , सुनेहरा और मासूम था .
मानो, नाना नानी को एक नन्हा सा गुड्डा मिल जाता जिसके संग दोनों हस्ते खेलते अपनी छुट्टिआं बित्ताते .
धीरे धीरे वक़्त गुज़रता गया टीलू अपनी उम्र में आगे बढ़ता रहा, बारवी क बाद इंजीनियरिंग फिर mba और उसके बाद नौकरी।
मनो ज़िन्दगी की ज़िमींदारिओं में उसका बचपन और उसके नाना नानी कहीं
वो क्या है ना कोरोना काल में मेरे माँ बाबा ने मेरा घर से ज़्यादा BAHAR निकलना वर्जित किया हुआ था , तो मेरा अपने चहेते चाय के ठेले पे आना मुमकिन नहीं हो प् रहा हां था , आज बड़ी मुश्किल से मीटिंग का बहाना देकर घर से बाहर निकला हूँ।।
तो अब जब इतना कुछ किया है तो सोचा आपको आज एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो मेरे दिल के बहुत HE करीब है , कहीं न कहीं इस कहानी के कुछ अंश आपके और मेरे बचपन से जुड़े हैं।
तो आज की कहानी है : टीलू और नाना नानी
ये कहानी है सं 1995 में , दिल्ली में रहने वाले टीलू की |
ये तब की बात है जब टीलू 7 साल का गोल मटोल बालक था , दुनिया दारी से अनजान और हर लालच से दूर बस अपनी ही धुन में सवार रहता |
टीलू महाशय अपनी माँ - बाबा की आंख का तारा तो था ही लेकिन जब भी शाम को खेलने निकलते थे मानो पूरे मोहल्ले की नज़रे इस गोल मटोल लड्डू जैसे टीलू को देख कर फूली न समाती थी | उसके चेहरे की चमक और मासूमियत देख कर सब के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आजाती।
टीलू महाशय के दो ही शौक थे एक चुपके से माँ की हाथ की बनी हुई सब्ज़ी खा जाना और दूसरा रोज़ शाम को आइस क्रीम वाले भाई की रेडी से PAANCH RUPE VALI ऑरेंज बार खाना।
और पता है क्या महाशय एक तीसरा शौक भी था - हर दुशेहरे की छुट्टिओं में अपनी नानी क घर पानीपत जाना।
मई 1995 की दशहरे की छुट्टिओं की बात है जैसे ही स्कूल से छुट्टियों का सर्कुलर घर आया तो टीलू अपनी माँ से कहने लगा "मम्मी मम्मी नानी के घर चलो न" , माँ भी टीलू की प्यार भरी ज़िद के आगे कुछ कह न पाई और आने वाले १० दिन की छुट्टिआं बिताने टीलू महाशय अपनी माँ के संग ननिहाल चले आए |
टीलू के लिए उसकी नानी का घर अपने घर से कम न था , उसके नाना नानी उसके दूसरे माँ बाबा की तरह थे |
टीलू ना सिर्फ अपने माँ बाबा का बल्कि अपने नाना नानी की भी आँखों का तारा था .
जब भी टीलू नानी के घर जाता था नानी पहले से ही उसके चहिते पकवान तैयार रखती थी आखिर कार नानी को भी पता था उनके लाडले नाती के पेट में पल दो पल चूहे जो उछाल कूद मचाते हैं।
दिल्ली से पानीपत हरयाण रोडवेज का झटके BHARA सफर पूरा कर जब टीलू नानी के घर पहुंचा तो सबसे पहले वो दौड़ के अपने नानाजी से लिपट गया और कहा " डैडी देखो मैं आगया अब जल्दी से मुझे 5 रुपए खर्ची दो " टीलू की मासूमियत भरी ज़िद देख कर नानाजी खुदको रोक न पाए और उसको प्यार से गले लगा के कहा " अरे टीलू ५ रुप्पे क्या तू 10 रुपए ले मेरे लाल "
ये सुनकर टीलू की ऑंखें चमक उठी और उसने अपने नानाजी को और ज़ोर से गले लगा लिया |
अभी बस नानाजी ने टीलू को गोद से उतारा ही था की पीछे से एकदम से कोई आया और उससे कहा " मेरा राजा बेटा आगया " और ये सुनते ही टीलू खिलखिला के चिल्लाया "नानी............... " और भाग कर अपनी चहेति नानी से जा लिपटा |
टीलू मनो जब भी नानी के घर जाता पूरा घर खुशिओं से किलकारियों से खिल उठता था और क्यों भी न हो आखिरकार सबका लाडला जो लौट आया था |
अब क्या था रोज़ सुबह टीलू महाशय को राजा की तरह उसके नानाजी उठाते , और उठते ही हमारे लाडले की पहली ख्वाहिश होती थी नानी के हाथ के परांठे |
टीलू मुँह से तो बाद में बोलता , उससे पहले ही नानी उसके चहिते दाल के परांठे सफ़ेद मक्ख़न से लाद कर अपने हाथो से उसे खिलाती |
पराँठे खाते ही महाशय जी अपने नानाजी के संग गौ शाला जाते गौओं को आटे का गोला खिलाते और डोलू भर के गाए का दूध घर ले आते , घर आते ही नानी अपने लाडले को नमकीन लस्सी का गिलास पिलाती और फिर टीलू महाशय को प्रतिदिन उसके मामा ठन्डे ठन्डे पानी से नहलाते |
माना टीलू हमारा खाने का शौक़ीन था लेकिन हर दोपहर टीलू अपनी नानी से रामायण सुने बिना उनकी नाक में दम कर देता , और जैसे ही कहानी ख़तम होती हमारे छोटू राम के पेट में मानो चूहे फिर से दौड़ लगाते और ये देख नानी तुरंत अपने लाडले के लिए उसकी चहीती पनीर की भुर्जी और देसी घी की बानी चुरी ले आती , और बस उसको प्यार और उदार भरी आँखों से देख मंद मंद मुस्कुराती .
जैसे हे शाम होती और नानाजी घर वापस आते सबसे पहले उसको बाजार में आलू की टिक्की खिला कर लाते और साथ ही में रामलीला दिखने मेले में भी लेकर जाते।
टीलू और नाना नानी का प्यार एक दम निर्मल , सुनेहरा और मासूम था .
मानो, नाना नानी को एक नन्हा सा गुड्डा मिल जाता जिसके संग दोनों हस्ते खेलते अपनी छुट्टिआं बित्ताते .
धीरे धीरे वक़्त गुज़रता गया टीलू अपनी उम्र में आगे बढ़ता रहा, बारवी क बाद इंजीनियरिंग फिर mba और उसके बाद नौकरी।
मनो ज़िन्दगी की ज़िमींदारिओं में उसका बचपन और उसके नाना नानी कहीं
Oct 23, 202007:13
Episode 2: Vo Promotion Wali Raat
A story about my friend Aman
Sep 11, 202008:58
Episode 1 : Tumhari Chaheti Neeli Kameez
तुम्हारी चहेती नीली कमीज"
आज सुबह जब मैंने अपनी लकड़ी की अलमारी खोली, तो एक दम से मेरी नज़र तुम्हारी चहेती नीली कमीज पर जा गिरी।
फिर लगा शायद माँ उसे धोना भूल गई है।
एकदम से मेरा हाथ उसकी और बढ़ा और जल्दी से मैंने उसे अपनी हथेली में सिमट लिया ।
फिर सोचा कि माँ से कह दूँ की इसको वाशिंग मशीन के "डेलिकेट" मोड में धो दें, लेकिन एक दम से एक अजब-सी महक महसूस हुई और मेरे मनको समझ आया की ये महक बिलकुल तुम्हारी खुशबू से मिलती जुलती है।
न जाने क्यों मैं खुदको रोक ना पाया और अपनी शर्ट के कालर को जल्दी में टटोला तो देखा तुम्हारी लिपस्टिक के वह हलके से लाल रंग के निशाँ अभी वहीँ पर थे, मानो ऐसा लगा तुम अभी भी मेरे कानो के पास अपने मन की बात फूस फूसा रही हो।
मैं तुम्हे वहीँ कहीं अपने आस पास महसूस कर ही रहा था तो मेरी नज़र कमीज के आस्तीन पर पड़ी सिलवटों पर जा गिरी|
तो याद आया, किस तर्हाँ स्पीड ब्रेकर के आने पर तुम गाढ़ी में घबरा कर एक दम से मेरी बाज़ू को अपने हाथों से दबोच लिया करती थी और मेरे मन को ऐसा एहसास होता था ,जैसे तुमने उस लम्हे में मुझे अपनी बाहों में समेट-सा लिया था।
जब तक मैं इस लम्हे को महसूस कर ही रहा था तो देखा कमीज का सबसे पहला बटन टूटा हुआ था , मैंने सोचा दर्ज़ी को जाकर उसे सीने को देदूं |
मगर नहीं तभी मेरे छोटे से दिमाग ने मेरे दिल को याद दिलाया कैसे जब एक दिन मैं घर देरी से आया था और ना जाने घंटो तक मेरा फ़ोन बंद था तो "घबरा कर तुमने मुझे अपनी और खींचा और मुझसे लिपट कर रोने लगी थी "
हाँ मैं उस समय डर गया था पर मेरे लिए तुम्हारी उस तड़प को देखना बिलकुल वैसा था जैसे मैंने एक लम्हे में पूरी दुनिया जीत ली हो
बस इस सब के बाद मैं रुक-सा गया, उस कमीज को वापस अलमारी में रख दिया, ताकि जब-जब तुम मझसे रूठ जाओ या कुछ पल या लम्हों के लिए भूल भी जाओ तो मैं उसको चुपके से देख कर तुम्हे याद कर लिया करूँगा।
और अगर तुम मझसे बीच राह में बिछड़ जाओ , उस कमीज को मैं अपनी ज़िन्दगी का सबसे नायाब और पाक हिस्सा बनाकर अपने ताबूत तक साथ लिए जाऊंगा |
हाँ वो तम्हारी चहेती नीली कमीज आज भी वैसे ही मेरी अलमारी के उस कोने में तुम्हारी यादों के साथ कहीं सिमट कर सजी है।
आज सुबह जब मैंने अपनी लकड़ी की अलमारी खोली, तो एक दम से मेरी नज़र तुम्हारी चहेती नीली कमीज पर जा गिरी।
फिर लगा शायद माँ उसे धोना भूल गई है।
एकदम से मेरा हाथ उसकी और बढ़ा और जल्दी से मैंने उसे अपनी हथेली में सिमट लिया ।
फिर सोचा कि माँ से कह दूँ की इसको वाशिंग मशीन के "डेलिकेट" मोड में धो दें, लेकिन एक दम से एक अजब-सी महक महसूस हुई और मेरे मनको समझ आया की ये महक बिलकुल तुम्हारी खुशबू से मिलती जुलती है।
न जाने क्यों मैं खुदको रोक ना पाया और अपनी शर्ट के कालर को जल्दी में टटोला तो देखा तुम्हारी लिपस्टिक के वह हलके से लाल रंग के निशाँ अभी वहीँ पर थे, मानो ऐसा लगा तुम अभी भी मेरे कानो के पास अपने मन की बात फूस फूसा रही हो।
मैं तुम्हे वहीँ कहीं अपने आस पास महसूस कर ही रहा था तो मेरी नज़र कमीज के आस्तीन पर पड़ी सिलवटों पर जा गिरी|
तो याद आया, किस तर्हाँ स्पीड ब्रेकर के आने पर तुम गाढ़ी में घबरा कर एक दम से मेरी बाज़ू को अपने हाथों से दबोच लिया करती थी और मेरे मन को ऐसा एहसास होता था ,जैसे तुमने उस लम्हे में मुझे अपनी बाहों में समेट-सा लिया था।
जब तक मैं इस लम्हे को महसूस कर ही रहा था तो देखा कमीज का सबसे पहला बटन टूटा हुआ था , मैंने सोचा दर्ज़ी को जाकर उसे सीने को देदूं |
मगर नहीं तभी मेरे छोटे से दिमाग ने मेरे दिल को याद दिलाया कैसे जब एक दिन मैं घर देरी से आया था और ना जाने घंटो तक मेरा फ़ोन बंद था तो "घबरा कर तुमने मुझे अपनी और खींचा और मुझसे लिपट कर रोने लगी थी "
हाँ मैं उस समय डर गया था पर मेरे लिए तुम्हारी उस तड़प को देखना बिलकुल वैसा था जैसे मैंने एक लम्हे में पूरी दुनिया जीत ली हो
बस इस सब के बाद मैं रुक-सा गया, उस कमीज को वापस अलमारी में रख दिया, ताकि जब-जब तुम मझसे रूठ जाओ या कुछ पल या लम्हों के लिए भूल भी जाओ तो मैं उसको चुपके से देख कर तुम्हे याद कर लिया करूँगा।
और अगर तुम मझसे बीच राह में बिछड़ जाओ , उस कमीज को मैं अपनी ज़िन्दगी का सबसे नायाब और पाक हिस्सा बनाकर अपने ताबूत तक साथ लिए जाऊंगा |
हाँ वो तम्हारी चहेती नीली कमीज आज भी वैसे ही मेरी अलमारी के उस कोने में तुम्हारी यादों के साथ कहीं सिमट कर सजी है।
Sep 05, 202011:50
Promo : Chai Kay Thele se Prateek Kay saath (Poetry and Stories)
हम उस देश में रहते हैं जहां जहाँ चाय के ठेले पर चर्चा करते करते हम लोगो ने प्रधानमन्त्री बदल दिए | चाय वो बाला है जिसने कॉलेज के फाइनल ईयर में ज़िन्दगी भर के दोस्त मिला दिए दिए .
चाय वो है जिसपर आज भी आधा हिंदुस्तान अपनी थकान मिटा रहा है .
तो दोस्तों मैं प्रतीक ले कर आ रहा हूँ ऐसे ही किसी चाय के ठेले के ीर्ध गिर्द लिखी हुई कवितायेँ और कहानिया अपने नए पॉडकास्ट जिसका नाम है " चाय के ठेले से "
चाय वो है जिसपर आज भी आधा हिंदुस्तान अपनी थकान मिटा रहा है .
तो दोस्तों मैं प्रतीक ले कर आ रहा हूँ ऐसे ही किसी चाय के ठेले के ीर्ध गिर्द लिखी हुई कवितायेँ और कहानिया अपने नए पॉडकास्ट जिसका नाम है " चाय के ठेले से "
Aug 19, 202000:59