Mediabharti.net
By Dharmendra Kumar
Mediabharti.netApr 22, 2024
कच्चतीवू बन सकता है श्रीलंका से संघर्ष की वजह...!
क्या कच्चतीवू मामला श्रीलंका के साथ संघर्ष की वजह बन सकता है? इस मामले का भारत और श्रीलंका के संबंधों पर पड़ने वाले असर के बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल। ब्रज खंडेलवाल देश के वह पहले पत्रकार हैं, जिन्होंने कच्चतीवू को श्रीलंका के हवाले किए जाने के विरोधस्वरूप सबसे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका डाली थी, जिसे साल 1971 के युद्ध की वजह से लगाए गए आपातकाल की वजह से यह कहकर खारिज कर दिया गया कि उस समय सभी प्रकार के मूल नागरिक अधिकारों पर पाबंदी है। उनसे बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
Possibility of taking back Kachchatheevu
Is there any possibility of taking back the 275 acres of Kachchatheevu island from Sri Lanka? Senior journalist Brij Khandelwal is explaining this matter in detail. He is the first journalist in the country to file a petition in the Delhi High Court against the handing over of Kachchatheevu to Sri Lanka, which was rejected due to the emergency imposed due to the 1971 war. All types of basic civil rights were restricted. Dharmendra Kumar, editor of Mediabharti.net is talking to him…
दिल्ली में एकदूसरे के ही ‘खिलाफ’ हैं कांग्रेस और आप…!
गठबंधन के बावजूद, दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एकदूसरे को नीचे की ओर खींचने में लगे हुए हैं और इसका पूरा फायदा पहले से ही बहुत ज्यादा मजबूत भारतीय जनता पार्टी को मिलना तय है। खास तौर पर, दक्षिणी दिल्ली और पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीटों पर चल रही इस राजनीतिक कश्मकश को बयां कर रहे हैं, जीइंडियान्यूज.कॉम के संपादक ललित सिंह गोदारा। उनसे बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
लोकसभा चुनावों के बाद क्या होगा नीतीश का हाल…!
लोकसभा चुनावों के बाद नीतीश का हाल क्या होगा..., बता रहे हैं प्रख्यात राजनीतिक टिप्पणीकार पारस नाथ चौधरी। पारस नाथ चौधरी हीडलबर्ग विश्वविद्यालय के दक्षिण एशिया संस्थान से जुड़े रहे हैं व बिहार के मामलों पर अच्छी समझ रखते हैं। उनसे बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
राजनीतिक आंदोलन खड़ा करने में प्रशांत किशोर की मुश्किलें
प्रशांत किशोर एक बेहतरीन विश्लेषक हैं, लेकिन क्या वह कोई राजनीतिक आंदोलन खड़ा करने की कुव्वत रखते हैं…, बता रहे हैं प्रख्यात राजनीतिक टिप्पणीकार पारस नाथ चौधरी। पारस नाथ चौधरी हीडलबर्ग विश्वविद्यालय के दक्षिण एशिया संस्थान से जुड़े रहे हैं व बिहार के मामलों पर अच्छी समझ रखते हैं। उनसे बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
बिहार में मुस्लिम-यादव गठजोड़ का हाल
इस बार के लोकसभा चुनावों के दौरान बिहार में मुस्लिम-यादव गठजोड़ कितना कामयाब हो सकता है, बता रहे हैं प्रख्यात राजनीतिक टिप्पणीकार पारस नाथ चौधरी। पारस नाथ चौधरी हीडलबर्ग विश्वविद्यालय के दक्षिण एशिया संस्थान से सेवानिवृत्त हैं व बिहार के मामलों पर अच्छी समझ रखते हैं। उनसे बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
बिहार में नजर आ रहा है नए तरह का 'आशावाद'
राजनीतिक रूप से बिहार में बीते पांच साल काफी उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। इस दौरान बिहार की जनता ने नीतीश कुमार की बीजेपी व राजद जैसे विपरीत स्वभाव वाले दलों के साथ सरकारें देखीं। लेकिन, अब बिहार में एक नए तरह का 'आशावाद' दिखाई दे रहा है। बिहार के मौजूदा माहौल के बारे में विस्तार से बता रहे हैं, प्रख्यात राजनीतिक टिप्पणीकार पारस नाथ चौधरी। पारस नाथ चौधरी हीडलबर्ग विश्वविद्यालय के दक्षिण एशिया संस्थान से जुड़े रहे हैं व बिहार के मामलों पर अच्छी समझ रखते हैं। उनसे बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
कच्चतीवू का तमिल राजनीति पर यह होगा असर...
कच्चतीवू मामले से एक तरफ जहां राष्ट्रवादी राजनीति को अतिरिक्त मजबूती मिलेगी, वहीं स्थानीय तमिल राजनीति को एक जोरदार झटका भी लग सकता है। इस मामले का तमिल राजनीति पर पड़ने वाले असर के बारे में बता रहे हैं, वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल। ब्रज खंडेलवाल देश के वह पहले पत्रकार हैं, जिन्होंने कच्चतीवू को श्रीलंका के हवाले किए जाने के विरोधस्वरूप सबसे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका डाली थी, जिसे साल 1971 के युद्ध की वजह से लगाए गए आपातकाल की वजह से यह कहकर खारिज कर दिया गया कि उस समय सभी प्रकार के मूल नागरिक अधिकारों पर पाबंदी है। उनसे बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
बांग्लादेश व कच्चतीवू मामले में यह है अंतर...
इंदिरा गांधी द्वारा कच्चतीवू द्वीप को श्रीलंका के हवाले कर दिए जाने व बांग्लादेश के साथ हुए सीमावर्ती गांवों के लेन-देन समझौते में क्या अंतर है, तथा मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास इस मामले में उपलब्ध विकल्प और इस मसले को उठाने के पीछे उनकी मंशा के बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल। ब्रज खंडेलवाल देश के वह पहले पत्रकार हैं, जिन्होंने कच्चतीवू को श्रीलंका के हवाले किए जाने के विरोधस्वरूप सबसे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका डाली, जिसे साल 1971 के युद्ध की वजह से लगाए गए आपातकाल की वजह से यह कहकर खारिज कर दिया गया कि उस समय सभी प्रकार के मूल नागरिक अधिकारों पर पाबंदी है। उनसे बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
Questions on timing of taking up Kachchatheevu issue
Questions are being raised on the timing of PM Narendra Modi raising the Kachchatheevu issue with such aggression. Senior journalist Brij Khandelwal explains this in detail. He is the first journalist in the country to file a petition in the Delhi High Court against the handing over of Kachchatheevu to Sri Lanka, which was rejected due to the emergency imposed during the 1971 Indo-Pakistan war. All types of basic civil rights were restricted at that time. Dharmendra Kumar, Editor, Mediabharti.net is talking to him…
भारत के हाथों से यूं फिसला कच्चतीवू...
इंदिरा गांधी द्वारा कच्चतीवू द्वीप श्रीलंका को दे दिए जाने की पूरी कहानी बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल। ब्रज खंडेलवाल देश के वह पहले पत्रकार हैं, जिन्होंने कच्चतीवू को श्रीलंका के हवाले किए जाने के विरोध में सबसे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसे साल 1971 के युद्ध की वजह से लगाए गए आपातकाल के दौरान यह कहकर खारिज कर दिया गया कि उस समय नागरिकों के सभी प्रकार के मूल अधिकारों पर पाबंदी है। उनसे बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
हरियाणा में हुआ है एक बड़ा बदलाव...
सरकारी नौकरियों के मामले में हरियाणा में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। ऐसी नौकरियों में रिश्वत लेकर भर्तियां किए जाने के चलन को यहां एक जोरदार धक्का लगा है। इस मसले पर आपस में बात कर रहे हैं दिल्ली से जीइंडियान्यूज.कॉम के संपादक ललित सिंह गोदारा और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
मोदी की गलतियां भांपने में विपक्ष नाकाम
नरेंद्र मोदी की सरकार को पूरा एक दशक बीत चुका है। ऐसे में क्या यह संभव है कि उन्होंने कोई गलती की ही न हो! निश्चित रूप से उनके कार्यकाल में कई गलतियां हुईं हैं, तो विपक्ष उन गलतियों को भांपने में नाकाम क्यों रहा है? इस मसले पर आपस में बात कर रहे हैं दिल्ली से जीइंडियान्यूज.कॉम के संपादक ललित सिंह गोदारा और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
करियर को लेकर ऐसे सोचते हैं युवा...
करियर को लेकर नई पीढ़ी के युवाओं की सोच पूरी तरह बदल चुकी है। आज के दिन नवयुवा एक अदद सरकारी नौकरी के बजाय उद्यमशीलता की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। इस मसले पर आपस में बात कर रहे हैं दिल्ली से जीइंडियान्यूज.कॉम के संपादक ललित सिंह गोदारा और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
'विकल्प' न बन केजरीवाल ने किया निराश...
भारत जैसे स्वस्थ लोकतंत्र में जनता हरदम विकल्प तलाश करती है। अरविंद केजरीवाल एक ऐसे ही विकल्प बनकर उभरे थे। केजरीवाल ने कांग्रेस और भाजपा से बराबर दूरी रखने का वादा किया और जनता ने उनके इस विचार को हाथोंहाथ ले भी लिया। पहले उन्हें तीन बार दिल्ली की सत्ता सौंपी, फिर पंजाब की सत्ता भी उन्हें दी, लेकिन क्या वह अपना वादा बरकरार रख पाए...! इस मसले पर आपस में बात कर रहे हैं दिल्ली से जीइंडियान्यूज.कॉम के संपादक ललित सिंह गोदारा और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
जन-मानस से कट गया है विपक्ष
अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा आयोजन के बहाने देश में राममयी संस्कृति के रचे-बसे होने के कई प्रमाण मिले हैं। लेकिन, क्या वजह है कि देश का मौजूदा विपक्ष इन्हें पहचानने और समझने से इनकार कर देता है? इस मसले पर आपस में बात कर रहे हैं मथुरा से समाचारएक्सप्रेस.कॉम के संपादक पवन गौतम और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
दोष नीति का नहीं, नियंताओं का है...
इतिहास निर्माण की प्रक्रिया में दोष नीतियों का नहीं होता है, बल्कि नियंताओं का होता है। नियंताओं द्वारा नीतियों के कार्यान्वयन में हुई त्रुटियां सभ्यताओं को बहुत भारी पड़ती है। इस मसले पर आपस में बात कर रहे हैं मथुरा से समाचारएक्सप्रेस.कॉम के संपादक पवन गौतम और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
अयोध्या मामले में यूं चूकी कांग्रेस...
श्री राम मंदिर मामले में कांग्रेस इतनी बड़ी गलती कैसे कर गई? श्री राम मंदिर मामले में संघर्ष की गाथा साढ़े पांच सौ साल पुरानी है, फिर कांग्रेस यह आंकड़ा कैसे भूल गई? इस मसले पर आपस में बात कर रहे हैं मथुरा से समाचारएक्सप्रेस.कॉम के संपादक पवन गौतम और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
अयोध्या के बाद अब कृष्ण की बारी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में तीन मंदिरों का विवाद था। इनमें से काशी और अयोध्या के विवाद हल हो चुके हैं। अब बारी कृष्ण जन्मभूमि की है। क्या अगले पांच साल में यह लक्ष्य भी प्राप्त हो जाएगा? इस मसले पर आपस में बात कर रहे हैं मथुरा से समाचारएक्सप्रेस.कॉम के संपादक पवन गौतम और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार।
कुछ इस तरह होगी भविष्य में भारत की राजनीति...
भविष्य में भारत की राजनीति किस करवट बैठेगी? भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष के रूप कौन दे पाएगा टक्कर...। विस्तार से जानिए वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार के बीच हुई इस बातचीत में...।
तीन महीने तक खिंच सकता है इजरायल-हमास का युद्ध…!
इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध अगले तीन महीने तक भी खिंच सकता है और यदि यह युद्ध इसी तरह तीव्रतर होता चला गय़ा तो यह इस्लाम धर्म के पतन की एक शुरुआत भी हो सकता है। युद्ध की मौजूदा स्थिति के बार में विस्तार से जानिए वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार के बीच हुई इस बातचीत में...
/
उत्तर की तुलना में ज्यादा 'समझदार' है दक्षिण भारत का मीडिया
उत्तर और दक्षिण भारत के मीडिया में एक बड़ा अंतर यह है कि दक्षिण में खबरों को 'सनसनीखेज' बनाकर पेश करने का चलन उतना नहीं है जितना देश के उत्तरी इलाकों में है। देश के दोनों हिस्सों के बीच मीडिया के प्रस्तुतीकरण में अंतर को स्पष्ट कर रही हैं ह्यूमरटाइम्स.कॉम की संपादक मुक्ता गुप्ता...
हिंदी पत्रकारिता के उन्नयन में मददगार है ऑनलाइन माध्यम
ऑनलाइन माध्यमों के उत्कर्ष के बाद पत्रकारिता, खासकर हिंदी पत्रकारिता के उन्नयन में मदद ही मिली है। इसे अन्य माध्यमों के लिए खतरे के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। वर्तमान मीडिया परिक्षेत्र के बदले हुए माहौल में ऑनलाइन पत्रकारिता के योगदान पर चर्चा कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार...
देश को नहीं है ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की जरूरत
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का मुद्दा ‘गर्मी’ पकड़ने लगा है। साथ ही, यह बहस भी एक बार फिर शुरू हो चुकी है कि क्या ऐसा करना जरूरी है। पांच साल में 'एक बार' और 'एक साथ' चुनाव के लिए जो 'वजहें' बताई जा रही हैं, बेशक उनमें से कई 'जायज' हैं, लेकिन की वजहें किसी भी तरह से गले नहीं उतरती हैं। 'सुखी लोकतंत्र' के लिए रोजाना कहीं न कहीं चुनाव होते ही रहने चाहिए, नेताओं को अपना 'रिपोर्ट कार्ड' मिलते रहना चाहिए। राम मनोहर लोहिया ने कभी कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती तो फिर आज की सत्ता एक जिंदा कौम को ऐसा करने पर मजबूर क्यों कर रही है? इसी मुद्दे से जुड़े कई सवालों पर मीडियाभारती.नेट से बात कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार विनीत सिंह।
इतनी भी आसान नहीं है 'पांच ट्रिलियन डॉलर' की अर्थव्यवस्था...
कोरोना के चलते 'पांच ट्रिलियन डॉलर' की अर्थव्यवस्था के सपने को एक बड़ी चोट पहुंची है। अब इसे लेकर सरकार द्वारा उठाए गए आगामी 'ठोस' कदम ही तय करेंगे कि यह 'सपना' सिर्फ सपना ही रहेगा या कोई मूर्त रूप ले पाएगा। इस विषय पर विस्तार से बता रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार...
तीन महीने के खर्चे जितनी बचत है बेहद जरूरी
आपद काल में छोटी बचतें कितनी कारगर साबित हो सकती हैं, मीडियाभारती.नेट से बात करते हुए बता रहे हैं वित्त नियोजक अभिनव गुप्ता...
अब 'साइलेंट वोटर' ही खोलेगा सत्ता का द्वार
चुनावी प्रक्रिया में, 'साइलेंट वोटर' के रूप में एक नया 'फिनोमिना' सामने आया है। मतदाताओं का यह वर्ग अपनी 'राय' जाहिर नहीं करता है, सिर्फ वोट करता है। मतदाताओं के इस नए रूप और व्यवहार के बारे में मीडियाभारती.इन से बात कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल।
भरोसे में आई कमी से बढ़ी हैं नरेंद्र मोदी की मुश्किलें
हालिया कुछेक महीनों में सरकार के कई फैसलों से लोगों के बीच उनके प्रति विश्वास कुछ कम हुआ है। कृषि कानूनों को लेकर किसानों का असंतोष भी उनमें से एक है। यदि सभी वर्गों को भरोसे में लेकर काम करने की रणनीति बनाई जाए तो कई अनावश्यक गतिरोधों से बचा जा सकता है। मीडियाभारती.नेट से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार विनीत सिंह बता रहे हैं कि कैसे इन ऊहापोह-भरी स्थितियों से बचा जाय...
निजता के नाम पर न बने दूरी
निजता के नाम पर रिश्तों में दूरी बनाने से होने वाले नुकसानों का जिक्र कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी...
भोजपुरी भाषा के उद्गम की कहानी
भोजपुरी साहित्य की परंपरा संत कबीर दास, दरिया दास व तुलसी दास से लेकर भिखारी ठाकुर की रचनाओं तक विस्तारित है। माना जाता है कि संस्कृत की साक्षात पुत्री है भोजपुरी भाषा...। साहित्य समालोचक प्रमोद कुमार पांडेय बता रहे हैं, भोजपुरी भाषा के उद्गम की कहानी...
अजीब दोराहे पर अटक गया है मीडिया
बीते कई राजनीतिक और सामाजिक प्रकरणों में रिपोर्टिंग से ऐसा लगने लगा है कि मीडिया अपनी मारक क्षमता कहीं खो बैठा है। मीडिया के सुर, लय और ताल के खो जाने से खिन्न ब्रज खंडेलवाल बता रहे हैं इसकी वजह...
कम आमदनी में भी ऐसे जारी रखें छोटे निवेश...
कोरोना काल में, हालांकि, घरेलू निवेश करने की बात थोड़ी अटपटी तो लगती है लेकिन सतत छोटा निवेश किसी भी घर की अर्थव्यवस्था का एक अहम पहलू है। ऐसे समय में जब आमदनी कम हुई है, नौकरियां छूट रही हैं, फिर भी, छोटे-छोटे निवेश के जरिए इस प्रक्रिया को कैसे जारी रखा जा सकता है? इसी तरह के कई सवालों पर वित्त नियोजक अभिनव गुप्ता से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार...
समझिए एमएसपी का असली 'खेल'
किसानों के संघर्ष की मुख्य वजह बना न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी आखिर है क्या? बहुत ही आसान भाषा में बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार प्रिय रंजन झा...
एमएसपी को ‘लीगल’ करने से नहीं है कोई फायदा
किसान सड़कों पर उतरकर नए कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, ये पंजाब के किसान हैं..., या पंजाब की सीमा से लगे हरियाणा और कुछ दूसरे इलाकों के...। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र या कर्नाटक के किसान इस तरह का विरोध नहीं कर रहे हैं। क्यों नहीं कर रहे हैं, यह सवाल है। क्या पंजाब के किसान नए कृषि कानूनों को समझ नहीं पा रहे हैं? इसके विपरीत, केंद्र सरकार विरोध कर रहे इन किसानों को क्यों नहीं समझा पा रही है? एमएसपी को कानूनी रूप से अनिवार्य करने में क्या अड़चन है? क्या किसानों की आड़ में नेतागिरी हो रही है? असली समस्या क्या है? इसका हल क्या है? ऐसे ही कई सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार प्रियरंजन झा के साथ बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...
‘लव जिहाद’ या महज बीजेपी का खुराफाती दिमाग!
यूपी, मध्य प्रदेश और अब हरियाणा में भी सरकारों ने लव जिहाद पर कानून बनाए जाने के संकेत दे दिए हैं। कानून बन भी जाएंगे, लेकिन क्या वाकई लव जिहाद जैसा कुछ है भी या यह बीजेपी के खुराफाती दिमाग की महज उपज मात्र है? हाल ही में कुछ घटनाएं ऐसी भी हुईं जिनमें हिंदू वधू और मुस्लिम वरों के रिश्ते टूटे हैं लेकिन सामाजिक जमीन पर ये घटनाएं लव जिहाद के दायरे में आती भी हैं या नहीं...? साथ ही, क्या अपनी पहचान छुपाकर रिश्ते बनाने के मामलों के पीछे लव जिहाद ही है? ऐसे ही कई सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...
आ गया है एक्जिट पोल से पीछा छुड़ाने का समय
बिहार चुनावों के परिणाम हमारे सामने आ चुके हैं... और, जैसे कि पिछले कई बार से एक्जिट पोल के नतीजे लगातार गलत आ रहे हैं, इस बार भी गलत ही साबित हुए। तो, क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि एक्जिट पोल की इस 'बेवकूफाना' अवधारणा को उठाकर डिब्बे में बंद करके कहीं रख दिया जाए…? एक्जिट पोल की प्रासंगिकता और इससे जुड़े कई दूसरे सवालों पर मीडिया आलोचक और वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...
बिहार चुनाव परिणामों के क्या हैं मायने?
बिहार में चुनावों के परिणाम आ चुके हैं। अब बिहार में राजनीतिक माहौल कैसा रहेगा और उसका केंद्र की राजनीति पर क्या असर पड़ने वाला है? इन्हीं सब बातों पर वरिष्ठ पत्रकार बिपिन तिवारी से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...
उत्तर और दक्षिण का सामाजिक विभाजन : मिथक और वास्तविकताएं
पूरी दुनिया में उत्तर और दक्षिण के बीच श्रेष्ठता को लेकर द्वंद्व की बात की जाती है। मानवीय रंग से जुड़ी संवेदनाएं भी इस संघर्ष में अपनी भूमिकाएं निभाती रही हैं। आदिकाल से चली आ रही यह बहस भारतीय उपमहाद्वीपीय समाज में भी नजर आती है। इस सामाजिक विवाद के स्वरूप और जटिलताओं को समझने के लिए ह्यूमर टाइम्स की संपादक मुक्ता गुप्ता से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार …
धर्म की राजनीति का अगला पड़ाव तो नहीं है श्री कृष्ण जन्मभूमि आंदोलन!
राम जन्मभूमि मामले में अदालत के फैसले के बाद मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। मंदिर बनना शुरू भी हो चुका है। देर-सवेर मंदिर बन भी जाएगा। लेकिन, क्या अब इसके बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि और काशी मामले का सिर उठाना महज इत्तेफाक है? ऐसे कई सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार विनीत सिंह के साथ बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...
सरकारें नहीं, समाज खत्म करेगा बढ़ती ‘संवेदनहीनता’ को
समाज में संवेदनहीनता लगातार बढ़ती जा रही है। अस्पतालों में, पुलिस के थानों में, किसी सरकारी दफ्तर में या कहीं भी आप जाएं और संवेदनहीनता से दो-चार न हों, यह आज की भागमभाग भरी जिंदगी में संभव ही नहीं है। हमारे समाज में लगातार बढ़ रही ‘संवेदनहीनता’ के कई ऐसे ही पहलुओं पर वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...
‘बकवास’ ही नहीं, बढ़िया सिनेमा भी बनता है भोजपुरी में
... एक रात को दो बजे, जब अचानक नींद खुल गई तो टीवी से 'उलझ' बैठे और चैनल सर्फ करते-करते 'भोजपुरी टेरीटरी' तक जा पहुंचे। किसी मूवी चैनल पर निरहुआ की फिल्म 'बिदेसिया' आ रही थी। भोजपुरी में ऐसी फिल्में भी बनती हैं, यह जानकर अचंभा हुआ। नौटंकी विधा को फिल्म विधा के साथ गूंथकर बनाई गई यह फिल्म जब देखना शुरू किया तो फिर चैनल बदल ही नहीं पाए। जरूरी नहीं है कि मिठास और श्रम की भाषा भोजपुरी में 'बकवास' फिल्में ही बनती हैं, यहां 'बढ़िया' सिनेमा भी है। भोजपुरी सिनेमा के पुराने रसूख और मौजूदा स्थिति पर वरिष्ठ पत्रकार और साहित्य समालोचक प्रमोद कुमार पांडेय से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...
बचपन से ही क्यों न दी जाए कानून की शिक्षा..!
हमारे देश में छात्रों के लिए विधिक शिक्षा का प्रावधान स्नातक स्तर पर ही होता है। हालांकि, इससे पहले, विद्यार्थियों को नागरिक शास्त्र के रूप में, थोड़ी-बहुत जानकारी जरूर दी जाती है, लेकिन इसे पर्याप्त कतई नहीं कहा जा सकता। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि वयस्क होने तक भी हमारे विद्यार्थियों के पास अपने ही देश के कानून के बारे में मूलभूत जानकारियां तक नहीं होती हैं। जब ये बच्चे एक नागरिक के रूप में कोई कानूनी मदद लेने के लिए किसी पुलिस थाना या अदालत में पहुंचते हैं, तो इन्हें कानूनी प्रक्रिया, अपने संवैधानिक दायरों, कर्तव्यों और यहां तक कि अधिकारों के बारे में भी बहुत कम जानकारी होती है। देश में वैधानिक शिक्षा के मौजूदा स्वरूप पर अधिवक्ता और विधिक मामलों के जानकार अमिताभ नीहार के साथ बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...
क्या बीजेपी नीतीश कुमार को 'किनारे' लगाने की कोई चाल चल रही है?
बिहार में चुनावी सरगर्मियां बहुत तेज हो गई हैं। दल-बदल और राजनीतिक दलों में तोड़म-फोड़ अपने चरम पर है। नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। चिराग पासवान एनडीए में हैं, लेकिन नहीं हैं। वह नीतीश कुमार के साथ भी नहीं हैं। एनडीए उनके दल लोक जनशक्ति पार्टी को अपना घटक मानता है, लेकिन चुनावी अभियान में मोदी के फोटो और नाम का इस्तेमाल करने से रोक भी रहा है। क्या इस सबके पीछे बीजेपी की नीतीश कुमार को किनारे लगाने की कोई चाल है? ऐसे ही कई सवालों के जवाब पाने और बिहार की वर्तमान राजनीति को समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार प्रियरंजन झा के साथ चर्चा कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...
पक्ष, विपक्ष और मीडिया को अपने गिरेबां में झांकने की जरूरत
हाथरस में विपक्षी दलों के नेताओं और मीडिया को आखिर क्यों रोका गया? इस मामले में पक्ष, विपक्ष और मीडिया अपनी भूमिका किस तरह निभा पाए, इस पर पूरी चर्चा होनी चाहिए। इस पूरे प्रकरण में सभी संबद्ध पक्षों का कितना लाभ हुआ, इसका आंकलन करना बेहद जरूरी है। इसी विषय पर वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल के साथ चर्चा कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...